Book Title: Gnatadharmkathang ka Sahityik evam Sanskrutik Adhyayan
Author(s): Rajkumari Kothari, Vijay Kumar
Publisher: Parshwanath Vidyapith

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Page 6
________________ प्राक्कथन कथा-साहित्य के क्षेत्र में प्रारम्भ से ही रुचि होने के कारण अपने अध्ययन-क्रम में आगम-ग्रन्थों के कथानकों को भी पढ़ने का अवसर मिला। इनमें मानव मन के शुभ-अशुभ भावों के कथानकों को व्यक्त करने वाली अनेक कथाएँ उपलब्ध होती हैं। उत्तराध्ययन, उपासकदशाङ्ग, विपाकसूत्र, ज्ञाताधर्मकथांग (णायाधम्मकहाओ) आदि आगम-ग्रन्थ उनमें विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं। इनमें भी ज्ञाताधर्मकथांग की कथाओं में अभिव्यक्त नैतिक व मानवीय मूल्यों ने मुझे बहुत ज्यादा प्रभावित किया। इसमें साहित्यिक व सांस्कृतिक महत्त्व की प्रभूत सामग्री भी पर्याप्त रूप से है, इस कारण इसके अध्ययन की ओर विशेष जिज्ञासा बढ़ी। अपने इस अध्ययन के अन्तर्गत मन को छूने वाली और ज्ञानराशि की रश्मियों को आलोकित करने वाली सामग्री को भविष्य के लिए स्मरणार्थ एक अलग डायरी में सङ्केतात्मक रूप में आलेखित करना भी शुरु कर दिया जो धीरे-धीरे बढ़ता गया, तब यह जिज्ञासा भी प्रबल हुई कि इसके आधार पर लेखन-कार्य शुरु किया जाय, लेकिन पारिवारिक दायित्वों के कारण अवसर का अभाव ही रहा। . . मेरे पूज्य व सम्माननीय पति डॉ० सुभाष कोठारी जो स्वयम् आगमविज्ञ भी है, इन सङ्केतात्मक नोट्सरूपी सङ्कलन को यदा-कदा उलट-पलट कर देखते रहते। इसी प्रयास में एक दिन वे सहसा बोल पड़े इतना परिश्रम किया है, पी-एच.डी. के लिए आधारभूमि बन गयी है, कुछ समय निकालो और लिखना शुरु करो। उनकी बात में क्जन था, फिर क्या था, एक निश्चय किया, और लग गयी लक्ष्य की ओर, उसका परिणाम जो निकला वह सामने हहैं। द्वादशाङ्गों में इस ज्ञाताधर्मकथांग का छठा स्थान है। इसके दो श्रुतस्कन्ध हैं। प्रथम श्रुतस्कन्ध में ज्ञात उदाहरण कथारूपों में हैं और द्वितीय श्रुतस्कन्ध में धर्मकथाएँ हैं। इसीलिए तत्त्वार्थभाष्यकार ने इसे ज्ञाताधर्मकथासूत्र कहा है और 'जयधवला' में ‘णायाधम्मकहाओ' कहा गया है। तात्पर्य यह है कि जिसमें धर्म का कथन किया गया है वह ज्ञाताधर्मकथा है। इस तरह यह कथा-साहित्य का प्रारम्भिक ग्रन्थ तथा लिखित कथा संग्रह का प्रथम सोपान है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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