Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti
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हो उठी । बांटवीया कुटुम्ब पर तो प्रारम्भ से नी पूज्यश्री का महान प्रभाव था । फलस्वरूप श्री इन्दुमती बहन पूज्यश्री की सेवा में रह कर धार्मिक अध्ययन करने लगी । इसने अल्प समय में ही अपनी कुशाग्र बुद्धि का परिचय दिया और अच्छा अध्ययन किया ।
बाटविया कुटुम्ब बडा विचक्षण और दूरदर्शी हैं। वे इन्दुमती बहन की प्रतिभा और उत्कट वैराग्य से प्रभावित हो चुके थे । उन्हें दृढ विश्वास हो गया था कि यह बालिका अत्यन्त होनहार है । ईसकें हाथों से शासन की प्रभावना और अनेक प्राणियों का कल्याण होने वाला है। इसके साथ ही साथ इस की अत्यन्त प्रबल बैराग्य भावना को ठेस पहुंचाना और धर्मान्तराय करना भी उचित नहीं । अतएव पुत्री लोभ से नहीं किन्तु अगणित प्राणियों के कल्याण की उदार कामना से प्रेरित होकर एवं पूज्य श्री के प्रवचन से प्रभाविस होकर श्री इन्दुमती बहन को दोक्षा प्रदान करने का उन्होंने निर्णय कर लिया । - अन्त में आचार्य श्री की प्रेरणा से प्रेरित होकर श्री आठकोटि दरियापुरी संप्रदाय के शान्तस्वभावो सरल हृदया विदुषी महासतीजी श्रीताराबाई एवं शांत स्वभाबो शास्त्र रहस्य की ज्ञाता श्रीहीराबाई महासती के समीप वि. सं. २०२२ को वैशाख शुक्ला एकादशी रवीवार के दिन ता० १. ५. १९६६ के दिन बडे समारोह के साथ अपनी इकलौती लाडली पुत्री को दीक्षा देकर उसके मोक्षमार्ग को प्रशस्त कर दिया । स्वयं भी इस महान कार्य को करके धन्य हो गये ।
दीक्षा ग्रहण कर लेने पर आप के जीवन का नया अध्ययन प्रारम्भ हुआ। आप यह भल समझती है कि मुनि जीवन फूलों की शय्या नहीं किन्तु शर-शय्या है, मुनि को सतत रागद्वेष रूपी शत्रुओं पर विजय पाने के लिए सतत सावधान रहना पडता है। इसी भावना से आप संयम की साधना में सतत गतीशील रहती है । इस प्रकार बाटवीया परिवार अत्यन्त धर्म परायण एवं पूज्यश्री के अनन्य उपासक है।
जैन धार्मिक संस्थाओं की आप सदैव सहायता करते रहे हैं । अ० भा० श्वे० स्था० जैन शास्त्रोद्धार समिति को भी आपने समय-समय पर आर्थिक सहायता प्रदान की है। आपने प्रस्तुत चरित्र ग्रन्थ के प्रकाशन एवं लेखन कार्य में होने वाले समस्त खर्च को देना स्वीकार किया है। अतः समिति उनका आभार मानती है।
आपका मन्त्री, श्री अ. भा. श्वे.स्था. जैन शास्त्रोद्धार समिति
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