Book Title: Ghasilalji Maharaj ka Jivan Charitra
Author(s): Rupendra Kumar
Publisher: A B Shwetambar Sthanakwasi Jain Shastroddhar Samiti

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Page 12
________________ समर्पण श्रीमान् गीरधरभाई एवं उनके परिवार का अल्प परिचय इस परिवर्तन शील संसार में कौन नहीं जन्म लेते हैं और मरते हैं ? किन्तु जन्म और जीवन मरण उन्हों का सफल है जिन्होंने अपने वंश की प्रतिष्ठा में चार चांद लगाए हों, जाति के अभ्युत्थान में योगदान किया, कोई श्रेष्ठ कार्य करके जीवन में क्राति की। विश्ववाटिका में नाना प्रकार के पुष्प खिलते हैं और अपना सौरभ दुनियां को लुटाकर मुरझा जाते हैं ऐसे ही सज्जन पुरुष भी इस संसार में आते हैं और अपने सतकृत्यों का सौरभ संसार में फैलाकर चले जाते हैं । जिस प्रकार मेघ वृष्टि करके चला जाता है, किन्तु पिछला वातावरण बहुत ही सुन्दर बना जाता है सम्पूर्ण वसुन्धरा को हरीभरी बना देता हैं । सज्जन और धार्मिक वृत्ति के पुरुष अवनि पर जन्म लेते हैं और पथ भ्रान्तजनो को सत्यपथ प्रदर्शित करते हैं, तथा अपने सत्यकार्यो से धार्मिक संस्कारों से पृथ्वी को आप्लावित करके एक आदर्श उपस्थित करते हैं । श्रीमान् सुश्रावक गिरधरभाई बांटविया भी ऐसे ही एक विशिष्ट श्रावक व धार्मिक संस्कार वाले सज्जन व्यक्ति है। सौराट्र के मोज नदी के किनारे 'खाखीजालिया' नामका एक छोटा-सा गांव वसा है । इस गांव में वि. सं. १९४० में श्रीमान् गिरधरभाई का जन्म हुआ । बचपन से हो सन्तों के सहवास में रहने के कारण आपकी अपने धर्म की ओर विशेष रुचि है । लक्ष्मी देवी की भी आप पर अपार कृपा है। इहलोकिक सुख सुविधा तथा भोगोपभोग का पूर्ण साधन होने पर भी आप उससे “पद्मपत्रमिवाम्भसा" पानी में अलिप्त रहनेवाले कमल पत्र की तरह निर्लिप्त रहते हैं । ____ श्रीमान गिरधरभाई को बाह्य दृष्टि से देखने पर ऐसा प्रतीत होता है कि इनकी व्यापारादि बाह्य प्रवृत्तियाँ इतनी अधिक तथा इतने विपुल परिमाण में फैली हुई हैं। इससे इनका अधिकतर समय इन सर्व की व्यवस्था में ही व्यतीत होता होगा, पर वस्तुतः उनके निकट रहने पर उनके मानस तथा दिनचर्या का सही-सही पता चलता है। ये अपना समय संत मुनियों के सहवास में व्यतीत करते हैं। सन्त समागम के कारण शास्त्रों का श्रवण मनन तो अनायास ही चलता रहता है । निरन्तर सत्संगति तथा शास्त्रों के श्रवण में अपना अधिकतर समय व्यतीत करने से आपकी वृत्ति बाह्य ओर से हटकर धर्म की ओर हो गई है। धर्म के लिए ये अपना तन मन और धन न्योछावर करने के लिए सदैव कटिबद्ध रहते हैं । आप अपनी ८५ वर्ष की अवस्था में भी श्रावक के बारह व्रतों का अत्यन्त निष्ठा और श्रद्धापूर्वक पालन कर रहे हैं। आपके पुत्र श्रीमान् अमीचन्दभाई भी आपही की तरह अत्यन्त धर्मनिष्ठ व्यक्ति हैं । आपकी सरलता, उदारता, धार्मिकता, शिक्षा तथा साहित्य प्रेम एवं परोपकार वृत्ति समाज के लक्ष्मी पुत्रों के लिए अनुकरणीय है । विशाल व्यवसाय होने पर भी आपका अधिकांश समय धार्मिक कार्यों में ही ब्यतीत होता है । आपकी धर्म पत्नी अ. सौ. व्रजकुंवरबेन तो धर्म की साक्षात् मूर्ति हि है। बहुत ही छोटी अवस्था में साधु साध्वियों के सत्संग से आपके विशुद्ध हृदय क्षेत्र में धार्मिकता एवं व्यवहारिकता के बीज पड चुके थे । धार्मिक संस्कार वाले परिवार में पाणि ग्रहण होने के बाद आपकी धार्मिक वृत्ति उत्तरोत्तर ज्यादा से ज्यादा बढ़ती हि गई । प्रेम, दक्षता एवं सहिष्णुता के द्वारा समूचे परिवार पर आपकी गहरी छाप पडी। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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