Book Title: Gatha Samaysara
Author(s): Hukamchand Bharilla
Publisher: Todarmal Smarak Trust

View full book text
Previous | Next

Page 7
________________ मंगलाचरण (दोहा) समयसार को साधकर, बने सिद्ध भगवान। अनंत चतुष्टय के धनी, श्री अरिहंत महान ।।१।। आचारज पाठक मुनी, प्रमत्त और अप्रमत्त। गुण में नित विचरण करें, नमन करूँ मैं नित्य।।२।। ज्ञायकभाव प्रकाशिनी, भाषी श्री भगवन्त। परमतत्त्व प्रतिपादिनी, जिनवाणी जयवंत ।।3।। (अडिल्ल छन्द)। साधकगणकाएकमात्र है साध्य जो। मक्तिमार्ग का एकमात्र आराध्य जो॥ उसमें ही मन रमे निरन्तररात-दिन। परमसत्य शिव सुन्दर ज्ञायकभाव जो||४|| (रोला छन्द) केवल ज्ञायकभाव जो बद्धाबद्ध नहीं है। जो प्रमत्त-अप्रमत्त न शुद्धाशुद्ध नहीं है। नय-प्रमाण के जिसमें भेद-प्रभेद नहीं हैं। जिसमें दर्शन-ज्ञान-चरित के भेद नहीं हैं ।।५।। जिसमें अपनापन ही दर्शन-ज्ञान कहा है। सम्यक्चारित्र जिसका निश्चलध्यान कहा है। वह एकत्व-विभक्त शुद्ध आतम परमातम। अजअनादिमध्यान्त रहित ज्ञायकशुद्धतम।।6।। गुण भेदों से भिन्न सार है समयसार का। पर्यायों से पार सार है समयसार का। मुक्तिवधू का प्यार सार है समयसार का। एकमात्र आधार सार है समयसार का ||७|| शुद्धभाव से बलि-बलि जाऊँ समयसार पर। जीवन का सर्वस्व समर्पण समयसार पर। समयसार की विषयवस्तु में नित्य रमे मन। समयसार के ज्ञान-ध्यान में बीते जीवन ||८|| ( समयसार की ज्ञायकभाव प्रबोधिनी टीका से )

Loading...

Page Navigation
1 ... 5 6 7 8 9 10 11 12 13 14 15 16 17 18 19 20 21 22 23 24 25 26 27 28 29 30 31 32 33 34 35 36 37 38 39 40 41 42 43 44 45 46 47 48 49 50 51 52 53 54 55 56 57 58 59 60 61 62 63 64 65 66 67 68 69 70 71 72 ... 130