Book Title: Enjoy Jainism
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 20
________________ अपनी बढाई करने से और दूसरों कि हलकाई से नीच गोत्र-कर्म बंधता हैं। इससे हजारों भव तक नीच कुल में जन्म लेना पडता हैं। सभी जीवों के प्रति समानभाव और समताभाव रखना। गुरु, देव व राजा - इन तीनों जगह दर्शनार्ये जाते समय खाली हाथ नहीं जाना चाहिये। सामर्थ्य के हिसाब से, अपने सेवको व जरुरतमंदो की अन्नवस्त्रादि से निरंतर सेवा करनी। माता-पिता, गुरु तथा रोगातुर इनकी सेवा, अपने सामर्थ्य के हिसाब से जीवनपर्यंत करना शिक्षा (ज्ञान) ही सारी समस्याओं का समाधान है। (10 Jain Education International For Private & Personal use only aamelorary.org

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