Book Title: Enjoy Jainism
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 40
________________ || सुदेव सुगुरु सुधर्म आदरु ।। रत्नत्रय 730 daineducation International जैन धर्म में देव, गुरु, धर्म का बड़ा ही महत्त्व है। देव वे होते हैं जो वीतराग बन चुके हैं। गुरु वे हैं जो वीतराग बनने की साधना करते हैं और आत्मा को वीतराग मार्ग पर ले जाने वाली साधना को धर्म कहते हैं। इन तीनों को रत्नत्रय कहते हैं । देव ... जैन धर्म ने राग द्वेष युक्त आत्मा को अपना देव नहीं माना है। राग का अर्थ है-अपने मन के अनुकूल लगने वाली वस्तु पर मोह और द्वेष का मतलब है - नापसन्द चीज पर घृणा । इन राग द्वेष पर विजय प्राप्त करने वाला ही जिन है। वही वीतराग है, उसे अरिहन्त भी कहते हैं । वही देव है । I गुरु. ... जैन धर्म ने गुरु उसे माना जिसका आध्यात्मिक उत्कर्ष हो, जिसके जीवन में संयम एवं सद्गुणों का प्राधान्य हो और जो साम्य भाव के द्वारा वीतरागता को प्रकाशित करता है। धर्म ... धर्म जीवन का मधुर संगीत है। जीवन में समरसता, सरसता और मधुरता का संचार कर वह मन और मस्तिष्क को परिमार्जित करता है। धर्म आत्मा को महात्मा और परमात्मा तक ले जाने वाला गुरु मन्त्र है। धर्म आत्मा का दिव्य प्रकाश है। वह बाहर नहीं अन्दर है । जो दुःख से, दुर्गति से, पापाचार और पतन से बचाकर आत्मा को ऊँचा उठाता है। 1 For Private & Personal Use Only .www.jainelibrary.org

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