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अतः फूल नहीं तो फूल की पांखुड़ी भी जरूर देना चाहिये | तुम्हारे आंगन या घर में आया हुआ कोई व्यक्ति खाली हाथ नहीं जाना चाहिये ।
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|| दीयतां दीयतां नित्यम् ।।
दान दो
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दान देना धर्म महल का पहला पंगतिया है । धर्म का आरम्भ दान से होता है।
व्यापार का फल धन है और धन का फल दान है। दान से मानव उदार बनता है।
दान से उत्तमता और मानवता खिलती है।
दान से दरिद्रता का नाश होता है।
दान
से सुख, सौभाग्य और स्वर्ग मिलता है।
दान
से व्यक्ति लोकप्रिय बनता है।
दान से प्राणियों का कल्याण होता है।
दान से धन की ममता घटती है।
दान से पुण्य बढ़ता है और पापों का नाश होता है।
प्रायः मनुष्य-भव में ही दान देने का अवसर मिलता है।
• अतः दान देने के भव में कंजूस मत बनो। गरीबों को अन्न दान, वस्त्र दान दो।
साधु पुरुषों को सुपात्र दान दो। मूक प्राणियों को अभयदान दो । अशिक्षित को सम्यग् ज्ञान का दान दो।
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