Book Title: Enjoy Jainism
Author(s): Kalyanbodhisuri
Publisher: K P Sanghvi Group

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Page 34
________________ 24 ।। तरस भुवणिक्कगुरुणो णमोऽणेगंतवायरस ।। please अनेकान्तवाद This is bow-you-say if this up how you say the word "please you how this cause taught you how अनेकान्तवाद सर्व लोक व्यवहार का आधार है। जैन तत्त्व ज्ञान का भव्य भवन इसकी नींव पर प्रतिष्ठित है। जैन धर्म ने जिस किसी भी वस्तु के सम्बन्ध में चिन्तन किया है, तो अनेकान्तवादी दृष्टि से ही किया है। अनेकान्तवाद का अर्थ है वस्तु पर विभिन्न दृष्टियों से चिन्तन करना। एक ही दृष्टि से किसी वस्तु पर चिन्तन करना अपूर्ण है, क्योंकि प्रत्येक पदार्थ चाहे वह छोटा हो - चाहे बड़ा, उसमें अनन्त धर्म रहे हुए हैं। धर्म का अर्थ है - गुण और विशेषता । जैसे एक फल है। उसमें रूप भी है, रस भी है, स्पर्श भी है, आकार भी है, क्षुधा शान्ति करने की शक्ति भी है। अनेक रोगों को मिटाने की शक्ति भी है, अनेक रोगों को बढ़ाने की भी शक्ति है। इस प्रकार उसमें अनन्त धर्म हैं। प्रत्येक पदार्थ को द्रव्य एवं पर्याय - स्थिर स्वरूप और अस्थिर अवस्था दोनों दृष्टियों से समझना अनेकान्त है। अनेकान्तवाद में भी का प्रयोग होता है तो एकान्तवाद में ही का प्रयोग होता है। जैसे फल में रूप भी है, यह अनेकान्तवाद है। फल में रूप ही है, यह एकान्तवाद है। Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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