Book Title: Dighnikayo Part 2
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri

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Page 256
________________ (२.८.३६७-३६७) ८. सक्कपञ्चसुत्तं २०९ परामासा अभिनिविस्स वोहरन्ति - ‘इदमेव सच्चं मोघमञ'न्ति । तस्मा न सब्बे समणब्राह्मणा एकन्तवादा एकन्तसीला एकन्तछन्दा एकन्तअज्झोसानाति । "सब्बेव नु खो, मारिस, समणब्राह्मणा अच्चन्तनिट्ठा अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अच्चन्तपरियोसाना'"ति ? "न खो, देवानमिन्द, सब्बे समणब्राह्मणा अच्चन्तनिट्ठा अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अच्चन्तपरियोसाना''ति । “कस्मा पन, मारिस, न सब्बे समणब्राह्मणा अच्चन्तनिट्ठा अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अच्चन्तपरियोसाना"ति ? “ये खो, देवानमिन्द, भिक्खू तण्हासङ्खयविमुत्ता ते अच्चन्तनिट्ठा अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अच्चन्तपरियोसाना । तस्मा न सब्बे समणब्राह्मणा अच्चन्तनिट्ठा अच्चन्तयोगक्खेमी अच्चन्तब्रह्मचारी अच्चन्तपरियोसाना''ति । इत्थं भगवा सक्कस्स देवानमिन्दस्स पहं पुट्ठो ब्याकासि । अत्तमनो सक्को देवानमिन्दो भगवतो भासितं अभिनन्दि अनुमोदि - "एवमेतं, भगवा, एवमेतं, सुगत । तिण्णा मेत्थ कसा विगता कथंकथा भगवतो पञ्हवेय्याकरणं सुत्वा'ति । ३६७. इतिह सक्को देवानमिन्दो भगवतो भासितं अभिनन्दित्वा अनुमोदित्वा भगवन्तं एतदवोच “एजा, भन्ते, रोगो, एजा गण्डो, एजा सल्लं, एजा इमं पुरिसं परिकड्डति तस्स तस्सेव भवस्स अभिनिब्बत्तिया । तस्मा अयं पुरिसो उच्चावचमापज्जति । येसाहं, भन्ते, पञ्हानं इतो बहिद्धा अञ्जसु समणब्राह्मणेसु ओकासकम्मम्पि नालत्थं, ते मे भगवता ब्याकता। दीघरत्तानुसयितञ्च पन मे विचिकिच्छाकथंकथासल्लं, तञ्च भगवता अब्बुळ्हन्ति । "अभिजानासि नो त्वं, देवानमिन्द, इमे पञ्हे अछे समणब्राह्मणे पुच्छिता''ति ? "अभिजानामहं, भन्ते, इमे पञ्हे अझे समणब्राह्मणे पुच्छिता''ति । “यथा कथं पन ते, देवानमिन्द, ब्याकंसु ? सचे ते अगरु भासस्सूति । “न खो मे, भन्ते, गरु यत्थस्स भगवा निसिन्नो भगवन्तरूपो वा''ति । “तेन हि, देवानमिन्द, भासस्सू'ति । “येस्वाहं, 209 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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