Book Title: Dighnikayo Part 2
Author(s): Vipassana Research Institute Igatpuri
Publisher: Vipassana Research Institute Igatpuri
View full book text
________________
[ऊ-क]
उय्यानभूमिं - १६, १७, १८, १९, २०, २१, २२, १३३
उरुन्दा - १९८
उरुवेलायं - ८७, १९७ उस्मासहगतो - २४९, २५१
ऊ
ऊरुट्ठिकं - २१९
एकग्गता - १६०
एकन्तअज्झोसानाति - २०८, २०९
एकन्तछन्दा - २०८, २०९
एकन्तवादा - २०८, २०९
एकन्तसीला - २०८, २०९ एकसमोसरणा- ४८ एकेकलोमो - १४ एकोदिभावं - १३९, २३४ एकोदिभूतो- १७७
रावणो महानागो - १९०
एवंविमुक्तो - ६५ एवंसीलो - ६५
एहिपस्सिको - ७३, १६०, १६४, १६८
ओ
ओकासकम्मम्पि - २०९ ओघतिण्णमनासवं - १९२
ओदातगव्हा - १९२
ओदातनिदस्सनं - ८६
ओदातवत्थवसनस्स - २४२
सद्दानुक्कमणिका
ओपनेय्यिको - ७३, १६०, १६४, १६८ ओपपातिका- ७२, ७३, १४८, १४९, १५०, १६०,
१८४, २३७, २३८, २३९, २४०, २४१, २४२, २४३, २४४, २४५, २४६, २४७, २४८, २४९,
Jain Education International
7
२५०, २५१, २५३, २६२ ओपमञ - १८९
ओपरज्जं - १४५
ओभासो - ९, १०, १२, १५४, १६६
ओरमत्तकेन - ६१
ओरम्भागियानं - ७२, ७३, १४८, १४९, १५०, १८४
ओसधितारका - ८६
ओळारिका - ६५, १५८
क
ककुधा नदी - ९८, १०१, १०२ ककुसन्धो - २, ३, ४१ कङ्क्षाधम्मो - ११२
कच्चायनो - ११३
कटुका- १९२
कणिकारपुप्फं - ८५
कहक्कानि रूपानि - २४५ कण्हसुक्कानं रूपानं - २४५ कण्हो - १९३
कतपुस - १०९
कन्तारे - २५४, २५५ कपिलवत्थु - ६, ४०, ४१
कपिलवत्थुवासी - १२३
कपिलवत्थुस्मिं - १२५, १८५, १९९
कपिसीसं आलम्बित्वा रोदमानो अट्ठासि - १०८
कप्पावसेसं - ७९, ८९, ९०, ९१
-
कप्पासिकदुस्सं - २५८, २५९ कप्पासिकसुखुमं – १४६ कप्पासिकसुत्तं - २५८, २५९ कप्पासं - १२१, २५८, २५९ कप्पं- ७९, ८०, ८८, ८९, ९०, ९१ कम्बलसुखमं - १४६
[७]
कम्बलस्सतरा - १९०
कम्मविपाकजं - १६, १३१
कम्मानं फलं विपाको २३९, २४१, २४७, २४८,
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org

Page Navigation
1 ... 316 317 318 319 320 321 322 323 324 325 326 327 328 329 330 331 332 333 334 335 336 337 338 339 340 341 342 343 344 345 346 347 348 349 350 351 352 353 354 355 356 357 358