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वेद नहीं रहता है तब भाव स्त्रीवेद की अपेक्षा चौदह गुणस्थान बताये गये हैं वे किस प्रकार बन सकते हैं ?
इसके समाधान में धवलाकार आचार्य ऊपर जो शंका उठाई गई है वह ठीक नहीं है। पर वेदों की प्रधानता नहीं है किन्तु गति की प्रधानता है । और वह पहले नष्ट नहीं होती है । अर्थात् मनुष्य गति चौदह स्थान तक रहती है उसी की प्रधानता से चौदह गुणस्थान कहे गये हैं ।
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कहते हैं कि
क्योंकि वहां
फिर भी शंकाकार कहता है कि जब भाववेद नौवें गुणस्थान के ऊपर नहीं रहता है, तब मनुष्य गति के रह जाने पर भी भाववेद की अपेक्षा चौदह गुणस्थान कैसे हो सकेंगे ?
इसके उत्तर में आचार्य स्पष्ट करते हैं कि मनुष्यगतिका भाववेद विशेषण है, इस लिये नौवें गुणस्थान तक तो भावस्त्रीवेदसहित मनुष्यगतिका सद्भाव रहता है। और नौवेंके ऊपर अर्थात् दश आदि गुणस्थानों में भाववेद विशेषण नष्ट होने पर भी मनुष्य गति तो बनी रहती है, इस लिये उस मनुष्य गति की प्रधानता से और भाव-स्त्रीवेद के नष्ट हो जाने पर भी उसके साथ रहने वाली मनुष्य गति के सद्भाव में उपचार से भाव- स्त्रीवेद की अपेक्षा चौदह गुणस्थान कहे गये हैं ।
इसका खुलासा लेश्या के दृष्टांत से समझ लेना चाहिये, शास्त्रकारों ने तेरहवें गुणस्थान तक शुक्ल लेश्या