Book Title: Digambar Jain Siddhant Darpan
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 160
________________ [ १४४ ] प्राप्त किया। समोसरण की रचना, भगवान का सिंहासन से चार अंगुल ऊंचे विराजमान रहना, चौंतीस अतिशयों का प्रगट होना, दिव्य ध्वनि का खिरना, अमुक २ तीर्थंकरों के इतने गणधर थे। समोसरण में इतने मुनि, इतनी अर्जिकाएँ श्रावक श्राविकाएँ थी इत्यादि बातों का बहुत विशद वर्णन प्रथमानुयोग-पुराण शास्त्रों में सर्वत्र पाया जाता है। परन्तु अमुक स्त्री पर्याय से मोक्ष गई। अमुक कपड़े पहने २ केवलज्ञान को प्राप्त हुआ। अमुक केवली ने कवलाहार किया, या अमुक केवली को भूख प्यास की बाधा हुई और वे अमुक के घर आहार को गये या उन्होंने समोसरण में ही आहार मगाया इत्यादि ऐसा वर्णन किसी भी दि० पुराण शास्त्र में नहीं पाया जाता है। यदि प्रो० सा० के मन्तव्यानुसार दिगम्बर शास्त्रोंके अनुसार भी स्त्री मुक्ति, सवस्त्र मुक्ति और केवली कवलाहार, मान्य होते तो उनका वर्णन किसी भी तीर्थकर के शासनकाल में किसी भी पुराण शास्त्र में अवश्य पाया जाता। परन्तु दिगम्बर शास्त्रों में तो भरत महाराज को घर में भी परमोत्कृष्ट वैराग्य बताते हुए भी यही बताया है कि जब जंगल में गये और कपड़े उन्होंने उतार डाले वे नग्न दिगम्बर बन गये तभी उन्हें केवलज्ञान हुआ। स्त्री पर्याय को सभी शास्त्रों में निंद्य बताया है और स्त्रीलिंग का सर्वथा छेद कर देव पर्याय पाने के पीछे पुरुषलिंग

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