Book Title: Digambar Jain Siddhant Darpan
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 164
________________ [ १४८ ] प्रोफेसर सा० के मन्तव्यों पर हमारा अभिमत वर्तमान समय में हमारी समाज के कतिपय विद्वान आचार्यों के वचनों को अप्रामाणिक सिद्ध करने में प्रवृत्ति करते हुए देखे जारहे हैं। इस लिये हमारे दि० जैन धर्म का माहात्म्य दिनों दिन घटता जा रहा है। हमें दुःख है कि अभी हाल ही में प्रो० हीरालाल जी सा० ने दिगम्बर आम्माय के मूलभूत सिद्धान्तों के विरुद्ध स्त्रीमुक्ति, सवनमुक्ति, केवली कबलाहार, इन बातों को दि० शास्त्रों से ही सिद्ध करने का विफल प्रयास किया है। यद्यपि प्रोफेसर सा० दिगम्बर धर्म के ही अनुयायी हैं साथ ही में उन्होंने दि० सिद्धान्तों के प्रधान ग्रन्थ "धवल सिद्धान्त" का सम्पादन भी किया है। ऐसे योग्य विद्वान होते हुए भी दि० सिद्धान्त के विपरीत बातों को सिद्ध करने का प्रयास कैसे कर डाला यह एक आश्चर्य और खेद की बात है। इसके उत्तर में समाज में अपनी अनुभवपूर्ण लेखनी के लिये प्रसिद्ध एवं प्रतिष्ठित धुरन्धर विज्ञान विद्यावारिधि वादीभ केसरी न्यायालंकार धर्मधीर पूज्य पं० मक्खनलाल जी शास्त्रीने सप्रमाण सयुक्तिक ट्रेक्ट रूप में उपयुक्त तीनों बातों बातों का अच्छी तरह से खण्डन कर मूलभूत दि० सिद्धान्तों को निःशक्ति कर दिया है।

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