Book Title: Digambar Jain Siddhant Darpan
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 155
________________ । १३६ ] क्रिया-कलाप के टीकाकार आचार्य प्रभाचन्द्र चैत्यभक्ति आदि को श्री गौतम गणधर कृत बताते हैं। इस लिये यह प्रमाण अतीव महत्वपूर्ण है। इसी चैत्य-भक्ति में आगे यह भी लिखा है"निरामिषसुतृप्तिमद्विविधवेदनानां क्षयात्" (क्रियाकलाप पृ० २८६ ) यहां पर यह स्पष्ट किया गया है कि क्षुधादि विविध वेदनाओं का भगवान के क्षय हो चुका है। इस लिये निरामिष भोजन से होने वाली तृप्ति से विलक्षण तृप्ति-कवलाहार रहित तृप्ति भगवान के रहती है। आचार्यवर्य यशोनन्दि ने पञ्च परमेष्ठी पाट में अर्हन्त भगवान की नैवेद्य से पूजा बताते हुए लिखा है नानार्धचन्द्रशतरंध्रसुहासफेणी। श्रेणीरसोद्धकलमौदनमोदकाचैः ।। संपूजयामि चरणांश्चरुभिर्जिनेशां। ध्वस्तक्षुधां भवदवभ्रमतापशान्त्यै ।। (पञ्चपरमेष्ठि पूजा पृ० १७) अर्थात-फेणी लाडू भात आदि से उन भगवान के चरणों की पूजा करता हूं जिनकी क्षुधा सर्वथा नष्ट हो चुकी है। आचार्य शुभचंद्र ने आदि मंगल में ही भगवान पहन्त के निराहार विशेषण दिया है

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