Book Title: Digambar Jain Siddhant Darpan
Author(s): Makkhanlal Shastri
Publisher: Digambar Jain Samaj

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Page 120
________________ [ १०४] मति श्रत दो ज्ञानों के बाद ही केवलज्ञान होकर सिद्ध पद हो जाता है किसी को अवधि अथवा अवधि मनपर्यय होकर फिर केवलज्ञान से सिद्धपद होता है। साक्षात् तो केवलज्ञान से ही सिद्ध पद होता है। परन्तु भूतपूर्व नय से मतिज्ञानादि से भी परम्परा सिद्धपद होता है। इसी प्रकार साक्षात् तो निर्ग्रन्थलिंग ( भावलिंग और नम दिगम्बर लिंग ) से ही मोक्ष होती है। परन्तु भूतपूर्व नय की दृष्टि से सवस्त्रलिंग से भी मोक्ष होती है। इसका अर्थ यही है कि निम्रन्थलिंग धारण करने के पहले गृहस्थ सवत रहता है। परन्तु वर्तमान मोक्षप्राप्ति निग्रंथ लिग सही होती है। यदि वर्तमान में साक्षात् भी सवस्त्रलिंग से मोक्ष मानी जाय तो बिना केवलज्ञान प्रात किये मतिज्ञान, श्रुतज्ञान से भी मोक्ष माननी पड़ेगी ? __ इसी विषय को राजबार्तिककार श्रीमद्भट्टाकलंकदेव ने सष्ट किया है। यथा--- वर्तमानविषयविवक्षायां अवेदत्वेन सिद्धिर्भवति अतीतगोचरनयापेक्षया अविशेषेण त्रिभ्यो वेदेभ्यः सिद्धिर्भवति, भावं प्रति, न तु द्रव्यं प्रति। द्रव्यापेक्षा तु पुल्लिंगेनैव सिद्धिः। अपरः प्रकार:-लिगं द्विविधं निग्रन्थालगं समन्थलिगं चेति तत्र प्रत्युत्पन्नः नयाश्रयेण निम्रन्थलिंगेन सिध्यति, भूतविषयनयादेशेन तु भजनीयम् ।" (राजवातिक पृष्ठ ३३६) वर्तमान नय की अपेक्षा से तो अवेद से सिद्ध पद

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