________________
२१
भव्य मुनि द्रव्यलिंगी होकर भी मिथ्यादृष्टि नहीं होता । अतः द्रव्यलिंगो मुनि मिथ्यादृष्टि ही हो, ऐसा एकान्त नियम नहीं है ।
इस कारण मुनि और जीवबध करने वाले कसाई में कषार्यों की अपेक्षा समानता बतलाना गलत है ।
दूसरे - कोई अभव्य पुरुष संसार, शरीर और विषय भोगों से विरक्त होकर मुनिदीक्षा ले ले, तो वह द्रव्यलिंगी मुनि अपने अन्तरंग के करुणामय भावों तथा शारीरिक, सांसारिक विरक्ति के कारण कसाई से असंख्यात गुणा अच्छा शुभ परिणामी होता है । कसाई के भाव दुष्ट निर्दय होते हैं जबकि मुनि के भाव अहिंसा, दया रूप होते हैं । कसाई छुरी से बेधड़क जीवों का कत्ल करता है और मुनि अपनी किसी भी प्रकृति से सूक्ष्म जीवों का भी कभी संकल्पी घात नहीं करता ।
इसके सिवाय कसाई के असत्य भाषण, चोरी, कुशील, परिग्रह, मांस भक्षण, मदिरापान, शिकार आदि पापों एवं दुर्व्यसनों का त्याग नहीं होता अतः उसके परिणाम सदा कलुषित रहते हैं जबकि द्रव्यलिंगी मुनि पंच पापों और सातों व्यसनों से रहित व्यावहारिक सच्चारित्रनिष्ठ होता है, अत: उसके परिणाम इस दृष्टि से शुभ कोमल, सरल, सदाचारी होते हैं ।
परिणामों के इसी महान् अन्तर के कारण कसाई नरक में जाता है और द्रव्यलिङ्गी मुनि सोलह स्वर्ग से भी ऊपर नौवें ग्रेवेयक का अहमिन्द्र पद तक प्राप्त कर सकता है । इस तरह भी नरकगामी कसाई और ग्रेवेयक विमानगामी द्रव्यलिङ्गी मुनि एक समान नहीं हो सकते ।
द्रव्यलिङ्गी मुनि अपनी वैराग्यमयी बाह्य परिणति से तथा श्रद्धा ज्ञान चारित्र की ओर प्रेरणा करने वाले अपने सत् उपदेशों से संसार के जीवों का कल्याण करता है, जीवों को कुपथ से हटाकर सुपथ पर लगता है, उनमें श्रद्धा, ज्ञान, वैराग्य उत्पन्न करके उन्हें संसार से विरक्त करता है । द्रव्यलिङ्गी मुनि का उपदेश पाकर बहुत से भव्य जीव मुनि
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org