Book Title: Digambar Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Jain Vidyarthi Sabha Delhi

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Page 38
________________ .२६ तीर्थ-वंदना व्यर्थ है ? कानजी स्वामी मोक्षमार्ग की किरण पुस्तक के १७० वें पृष्ठ पर लिखते हैं कि ___"कोई कहै कि "सम्मेदशिखर और गिरनार का वातावरण ऐसा है कि धर्म की रुचि होती है, ऐसा मानने वाला मिथ्यादृष्टि है।" ___ सम्मेदशिखर गिरनार आदि स्थानों से तीर्थकरों तथा असंख्य अन्य मुनियों ने मुक्ति प्राप्त की है, उन स्थानों पर जाकर प्रत्येक स्त्री पुरुष उन मुक्त पुरुषों का हृदय से स्मरण करते हैं, इस कारण वहाँ के शान्त वातावरण से वीतरागता का उदय भव्य जीवों को हुआ करता है, अनेक व्यक्ति तो वहाँ जाकर संसार से विरक्त हो कर मुनि भी बन जाते हैं । इसी कारण उन मुक्ति स्थानों को 'तीर्थ' (संसार सागर से पार करने वाला) कहते हैं। परन्तु कानजी उस धार्मिक श्रद्धा को मिथ्यात्व कह कर भोली जनता में भ्रम फैलाते हैं । परमात्मप्रकाश में लिखा है "व्यवहारनयेन निर्वाणस्थान-चैत्यालयादिके तीर्थभूतगुण-स्मरणार्थ तीर्थ भवति ।" __ यानी–व्यवहारनय से निर्वाणभूमि और चैत्यालय (जिन मंदिर) आदि में तीर्थस्वरूप तीर्थंकरादि के गुण स्मरण करने के लिये तीर्थ (संसार सागर से पार करने वाला स्थान) होता है। किन्तु कान जी उलटी बात लिखकर जनता को तीर्थ-वन्दना से दूर रखना चाहते हैं । इसके साथ ही स्वयं इन सम्मेद-शिखर, गिरनार आदि तीर्थों की वन्दना भी करते हैं। शायद कान जी अपने आपको सिद्ध समान मान कर तीर्थ-वन्दना को अहितकारी या व्यर्थ समझते होंगे ।अपने पापको Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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