________________
२७
इसलिए कान जी का उपर्युक्त लिखना गलत है, भ्रम पैदा करने वाला है तथा जैन सिद्धान्त के विरुद्ध है, अतः वह जैन साहित्य का विकार है ।
हिंसा से पुण्य बन्ध
कानजी कहते हैं'हिंसा करते समय भी
कसाई को अल्प- अल्प पुण्यबन्ध होता है ।"
- मोक्षमार्ग की किरण अ० ३ पृष्ठ १२२
तत्वार्थ सूत्रकार श्री उमास्वाति आचार्य ने तत्वार्थ सूत्र के छठे अध्याय का तीसरा सूत्र लिखा है
'शुभः पुण्यास्याशुभ: पापस्य ।' ६-३ ।
अर्थ — जीवरक्षा करना, हित मित सत्य प्रिय वचन बोलना आदि शुभ मन वचन काय की प्रवृत्ति ( शुभ योग ) पुण्य - आस्रव का कारण है और हिंसा करना, असत्य बोलना, कामक्रीडा आदि अशुभ योग पाप - आस्रव (असातावेदनीय आदि अशुभ कर्मों के आस्रव) का कारण है ।
पुण्य- आस्रव और पाप आस्रव की इस परिभाषा का सभी दि० जैन ग्रन्थकारों ने समर्थन किया है ।
तदनुसार कसाई बकरा गाय आदि जीवों की छुरी आदि से हिंसा करते समय अपने मन वचन काय योग से पाप कर्मों (असातावेदनीय, नरक गति आदि) का आस्रव तथा बन्ध करता है ।
परन्तु कानजी पुण्य पाप आस्रव की उस आर्ष व्याख्या पर पानी फेरते हुए जीव हिंसा करते समय भी कसाई के पुण्य-बन्ध का कपोलकल्पित विधान करके सर्वसाधारण को पथभ्रष्ट करना चाहते हैं । हिंसा करने से पुण्यबन्ध होना' यह कानजी के सिवाय अन्य किसी जैन ग्रन्थकार ने नहीं बतलाया ।
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org