Book Title: Digambar Jain Sahitya me Vikar
Author(s): Vidyanandmuni
Publisher: Jain Vidyarthi Sabha Delhi

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Page 41
________________ कतिपय विद्वानों के पठनीय आभिमत अन्त में विभिन्न विद्वानों के कुछ पाठनीय लेखांश उपयोगी समझ कर यहाँ उद्धृत किये जाते हैं। नियतिवाद दृष्टिविष (ले०-डा० प्रो० महेन्द्रकुमार न्यायाचार्य बनारस) "आज श्री कानजी स्वामी की वस्तु विज्ञानसार पुस्तक को पलटते समय उस प्रहसन की याद आ गई और ज्ञात हुआ कि नियतिवाद का कालकूट ईश्वरवाद से भी भयंकर है। ईश्वरवाद में इतना अवकाश है कि यदि ईश्वर की भक्ति की जाय तो ईश्वर के विधान में हेरफेर हो जाता है । ईश्वर भी हमारे सत्कर्म और दुष्कर्मों के अनुसार ही फल का विधान करता है। पर यह नियतिवाद अभेद्य है। आश्चर्य तो यह है कि इसे अनन्त पुरुषार्थ का नाम दिया जाता है । यह कालकूट कुन्दकुन्द, अध्यात्म, सर्वज्ञ, सम्यग्दर्शन और धर्म की शक्कर में लपेट कर दिया जाता है । ईश्वरवादी साँप के जहर का एक उपाय (ईश्वर) तो है पर इस नियतिवाद कालकूट का इस भीषण दृष्टिविष का कोई उपाय नहीं, क्योंकि हर एक द्रव्य की हर समय की पर्याय नियत है । ३२ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org

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