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धर्मशास्त्र का इतिहास
हैं, किन्तु उनमें हेमाद्रि के तथा अन्य ग्रन्थों के बहुत-से अंश ज्यों-के-त्यों रखे हुए हैं। इन कतिपय ग्रन्थों में व्रतों का विवेचन असन्तुलित है, यथा वर्षक्रियाकौमुदी ने प्रतिपदा, द्वितीया एवं तृतीया के व्रतों का वर्णन केवल दो पृष्ठों (२९-३०) मैं किया है , किन्तु एकादशी पर २२ पृष्ठों का विवेचन है (पृ० ४२-६४)।
यह बात ध्यान में रखने योग्य है कि इस विभाग का सम्बन्ध धर्मशास्त्र-सम्बन्धी ग्रन्थों में उल्लिखित एवं विवेचित व्रतों से है। स्त्रियों या जन जातियों या अशिक्षित व्यक्तियों द्वारा सम्पादित सभी व्रतों अथवा बंगाली, हिन्दी तथा मराठी भाषाओं में लिखित ग्रन्थों में उल्लिखित व्रतों के विवरण का प्रयास यहाँ नहीं किया गया है। ऐसा करने से इस ग्रन्थ का आकार बहुत बढ़ जाता।
व्रतों के आरम्भ करने के काल निर्दिष्ट तिथियों पर होने वाले व्रतों के अतिरिक्त इसके विषय में विस्तारपूर्ण व्यवस्थाएँ की गयी हैं कि सामान्य एवं विशिष्ट रूप से व्रत एवं अन्य धार्मिक कृत्य किन्हीं निर्दिष्ट कालों में ही आरम्भ किये जायें। उदाहरणार्थ, गार्ग्य का कथन है--'जब बृहस्पति एवं शुक्र ग्रह अस्त हो गये हों (आकाश में सूर्य के निकट होने से जव न दिखाई पड़ें) या जब वे बाल या वृद्ध कहे जाने की दशा में हों तथा मलमास में, तब न व्रत का और न उसके उद्यापन (समाप्त करने के कृत्य) का आरम्भ होना चाहिए' (हेमाद्रि, व्रत, पृ० २४५, नि० सि०, पृ० २३, मदनरत्ने गाठः)। बृहस्पति (गुरु) एवं शुक्र की बालावस्था उनके उदय हो जाने के उपरान्त की एक निश्चित अवधि है तथा वृद्धत्व या वार्धक उनके अस्त होने के पूर्व का एक निश्चित काल है। इन अवधि-कालों के विषय में एकमति नहीं है और ये काल विभिन्न देशों में विभिन्न हैं, ये परिस्थिति की कठिनाई के अनुसार भी माने जाते हैं, किन्तु वराहमिहिर के मत से जो अधिक मान्य काल हो उसे मान लेना चाहिए। राजमार्तण्ड में इस विषय में कई श्लोक हैं, जिनमें एक है--जब शुक्र पश्चिम में उदित होता है तो वह दस दिनों तक बाल है, किन्तु जब पूर्व
होता है तो तीन दिनों तक बाल होता है। पूर्व में अस्त होने पर एक पक्ष तक यह वद्ध है, किन्तु पश्चिम में अस्त होता है तो यह पाँच दिनों तक वृद्ध है (और देखिए गाये, हेमाद्रि, व्रत, १, पृ० २४६)। देवीपुराण में ऐसी व्यवस्था है कि जब गुरु या शुक्र सिंह राशि में हों तो कोई धार्मिक कर्म नहीं आरम्भ करना चाहिए। लल्ल (समयमयूख में उद्धृत) का कथन है कि गुर्वादित्य में (जब सूर्य बृहस्पति के गृह में हों अर्थात् धनु और मीन राशि में हों
६. यदि काणे के समान अन्य विद्वान् लेखक भारत के सामान्य जनों द्वारा सम्पादित व्रतों एवं उत्सवों, लोक-जीवन, वन-जीवन, पर्वत-जीवन अथवा विभिन्न प्रान्तों के विभिन्न जीवन-पहलुओं का सैद्धान्तिक एवं व्यावहारिक अध्ययन करें और इन सभी अध्ययनों का लेखा-जोखा उपस्थित किया जाय तो वह भारतीय समाजविज्ञान एवं नृ-शास्त्र पर अभूतपूर्व आलेखन सिद्ध होगा। कतिपय अध्ययन हो चुके हैं, यथा प्रो० बी० के० सरकार का 'फोक एलिमेण्ट इन हिन्दू कल्चर', श्रीमती स्टीवेंसन का 'राइट्स आव दि ट्वाइस-बान', अण्डरहिल का हिन्दू रिलिजस ईयर', बी० ए० गुप्ते का हिन्दू हालीडेज एण्ड सेरोमनोज', आर० सी० मुकर्जी का 'ऐश्येण्ट इण्डियन फास्ट एण्ड फीस्ट्स', श्री ऋग्वेदी का मराठी ग्रन्थ 'हिस्ट्री आव आर्यन फेस्टीवल्स' आदि। किन्तु इन ग्रन्थों में (अण्डरहिल के ग्रन्थ में कुछ धर्मशास्त्रीय उल्लेख हैं) धर्मशास्त्र-सम्बन्धी उल्लेखों का सर्वथा अभाव है। आशा है इस संक्षिप्त अनुवाद से प्रेरित होकर विद्वान् जन इस महत्त्वपूर्ण कार्य में लगेंगे। -रूपान्तरकार।
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