Book Title: Dharmshastra ka Itihas Part 3 Author(s): Pandurang V Kane Publisher: Hindi Bhavan Lakhnou View full book textPage 7
________________ ब्राह्मण, कल्पसूत्र, स्मृति, पुराण, रामायण, महाभारत आदि ग्रन्थों से संकेत-सूत्र और संदर्भ एकत्र करना कितना कठिन है, इसकी कल्पना की जा सकती है। 'धर्मशास्त्र का इतिहास' पाँच भागों (जिल्दों) में संपन्न किया गया है, प्रस्तुत पुस्तक इसका तीसरा भाग है। समस्त ग्रन्थ का विषय-विभाजन भी पाँच खण्डों में संपन्न हुआ है और इस भाग में 'चतुर्थ खण्ड' का समावेश किया गया है। इन सभी भागों को एक संयुक्त 'अनुक्रमणिका' समिति की ओर से अलग पुस्तिका के रूप में प्रकाशित हो चुकी है । हमें अत्यन्त प्रसन्नता है कि इसके अन्य भागों के समान प्रस्तुत तृतीय भाग का भी सुधी पाठकों ने समादर किया और प्रथम संस्करण शीघ्र ही समाप्त हो गया। आज स्वाध्यायशील अध्येताओं की अधिकाधिक मांग पर हम इस भाग का द्वितीय संस्करण प्रस्तुत करते हुए संतोष का अनुभव करते हैं। यहाँ यह उल्लेखनीय है कि कागज की दुर्लभता, मुद्रण, रोशनाई, वेष्टन आदि वस्तुओं की दरों में असाधारण वृद्धि हो जाने पर भी हम इस संस्करण का मूल्य बढ़ा नहीं रहे हैं। हमें विश्वास है कि प्रचार और प्रसार की दृष्टि से हमारे इस आयास का पूर्ववत् स्वागत और समादर होगा। हमारी यह चेष्टा होगी कि भविष्य में भी हम इस प्रकार के महनीय ग्रन्थ उचित मूल्य पर ही अपने पाठकों को सुलभ करायें। हम एक बार पुनः हिन्दी के छात्रों, पाठकों अध्यापकों, जिज्ञासुओं और विद्वानों से, विशेषतः उन लोगों से जिन्हें भारत और भारतीयता के प्रति विशेष ममत्व और अपनत्व है, यह अनुरोध करना चाहेंगे कि वे इस ऐतिहासिक ग्रन्थ का अवश्य ही अध्ययन और मनन करें। इससे उन्हें बहुत कुछ प्राप्ति होगी, यह कहने में हमें संकोच नहीं । हमारी अभिलाषा है, यह ग्रन्थ प्रत्येक सुपंठित और सांस्कृतिक परिवार में सुलभ और समादृत हो। मकर संक्रान्ति, सं० २०३१ (१६७५ ई०) राजर्षि पुरुषोत्तमदास टण्डन हिन्दी भवन महात्मा गांधी मार्ग, लखनऊ काशीनाथ उपाध्याय 'भ्रमर' सचिव, हिन्दी समिति, उत्तर प्रदेश शासन KHABAR Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.orgPage Navigation
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