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एस धम्मो सनंतनो
और यह भी भरोसा किया कि आखिर सुंदरी के भीतर भी आत्मा है, कचोटेगी। कितनी देर नहीं कचोटेगी? एक दिन बीता होगा, दो दिन बीते होंगे, तीन दिन बीते होंगे, गांव में अफवाह खूब घनी होने लगी होगी, कि धुआं खूब फैलने लगा होगा। सुंदरी को लगता तो होगा कि बुद्ध बुलाएंगे, पूछेगे, डांटेंगे-डपटेंगे। ऐसा भी नहीं था कि डांटते-डपटते नहीं थे! हमने कई कहानियां देखी हैं कि बुद्ध अपने शिष्य को बुलाते हैं, डांटते-डपटते हैं। शिष्य के हित में हो तो डांटते-डपटते हैं। लेकिन यह तो बात अपने हित की थी, इसलिए कुछ भी नहीं कहा। शिष्य गलत जा रहा हो, शिष्य अपने को नुकसान पहुंचा रहा हो, तो बुद्ध सब उपाय करते। लेकिन इस मामले में तो बुद्ध ने कोई भी उपाय न किया। इस मामले में बिलकुल चुप रहे।
इस चुप्पी का भी परिणाम होता है। चुप्पी भी बड़ी अपूर्व ऊर्जा प्रगट करती है। कभी-कभी मौन रह जाने से जैसा उत्तर आता है, वैसा कुछ कहने से नहीं आता। कभी न लड़ने से जीत होती है और कभी लड़ने से हार हो जाती है। बुद्ध चुप रहे।
धीरे-धीरे यह बात सारे नगर की चर्चा का विषय बन गयी। फिर तो लोगों ने कोई और बात ही न की होगी महीनों तक। एक ही चर्चा रही होगी। फिर बात बढ़ने लगी। एक मुंह से दूसरे मुंह जाने लगी और बड़ी होने लगी। ____लोग ऐसे ही चर्चा थोड़े ही करते हैं, चर्चा में थोड़ा जोड़ते हैं। लोग बड़े सर्जनात्मक हैं! लोग जोड़ते भी हैं, बढ़ाते भी हैं, सुधारते भी हैं, चमकाते भी हैं, आभूषण भी लगाते हैं। बात जब फैलती है तो तुम समझ सकते हो कि उसमें हजारों कलाकार भाग लेते हैं। लेकिन भगवान चुप थे सो चुप ही रहे। ' ___ परिणाम होने शुरू हो गए। भगवान के पास आने वालों की संख्या रोज-रोज कम होने लगी। हजारों आते थे, फिर सैकड़ों रह गए, फिर अंगुलियों पर गिने जा सकें इतने ही लोग बचे। और तब भगवान हंसते और कहते-देखो, सुंदरी परिव्राजिका का अपूर्व कार्य; कचरा-कचरा जल गया, सोना-सोना बचा।
यह बात सुंदरी को भी खबर लगती होगी कि भगवान हंसते हैं और ऐसा कहते हैं कि देखो, सुंदरी का अपूर्व कार्य। बड़ी कृपा की सुंदरी ने। उसके मन में और चोट होने लगी होगी, और काटने लगा होगा यह भाव, रातभर सो न सकती होगी, उठती-बैठती होगी और पीड़ा होती होगी, यह शूल की तरह चुभने लगा होगा कि वह क्या कर रही है?
भगवान की शांति को अचल देख धर्मगुरुओं ने गुंडों को रुपये देकर सुंदरी को मरवा डाला और फूलों के एक ढेर में जेतवन में ही छिपा दी उसकी लाश। । भगवान की शांति से सुंदरी धीरे-धीरे अपने कुकृत्य पर पछताने लगी थी। धर्मगुरुओं को पता चलने लगा होगा कि सुंदरी अब रस नहीं लेती है। सुंदरी अब गांव भी नहीं आती है। अगर उससे पूछते भी हैं तो कहती भी है, तो भी पुराने ढंग से नहीं कहती है, बेमन से कहती है। सुंदरी उदास दिखती है, सुंदरी को बेचैनी पैदा
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