Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 355
________________ एस धम्मो सनंतनो अब तुम क्या करोगे? जब तक वे देना बंद न करें, तब तक तुम्हारे हाथ में तो कुछ नहीं रहा, तुम तो परतंत्र हो गए। और दूसरे बहुत हैं। इतने बहुत हैं कि जब सब तुम्हें दुख देना बंद करेंगे तब तुम शायद स्वतंत्र हो पाओ, ऐसी घड़ी कभी आएगी, इसका भरोसा करना मुश्किल है। बुद्ध कहते हैं, तुम्हीं अपने दुख के कारण हो। जब तुम दूसरों को दुख देते हो, तो तुम दुख को निमंत्रण दे रहे हो। और तुम्हीं अपने सुख के कारण हो। जब तुम दूसरों को सुख देते हो, तो तुम सुख को बुलावा देते हो। सुख चाहते हो, सुख दो। दुख चाहते हो, दुख दो। गणित बहुत सीधा-साफ है। और हर जीवन के अनुभव को माला बनाओ। जागकर जीवन के एक-एक फूल को पिरोओ, ताकि तुम्हारे पास जीवन-सूत्र हाथ में आ जाए। और फिर, अंतिमरूपेण, जीवन के सारे फूलों को निचोड़ लो, सार-सार निचोड़ लो, असार को छोड़ दो, वही सार बुद्धत्व है। वही सार बोधि है। और जैसे हाथी कीचड़ से निकल आया, तुम भी निकल आओगे। चुनौती स्वीकार करो। धन्यभागी हैं वे, जो बुद्धों की चुनौती को स्वीकार कर लेते हैं। आज इतना ही। 342

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