Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 349
________________ एस धम्मो सनंतनों क्षण में, बिना समय को खोए घटना घट सकती है, तुम्हारी त्वरा पर निर्भर है। इसलिए बुद्ध ने कहा - एक क्षण में क्रांति घट सकती है । त्वरा चाहिए, भिक्षुओ। तीव्रता चाहिए। ऐसी तीव्रता कि तुम्हारा संपूर्ण प्राण-मन उसमें संलग्न हो जाए। अपनी शक्ति पर श्रद्धा चाहिए, भिक्षुओ । बुद्ध कहते हैं, अपनी शक्ति पर श्रद्धा । बुद्ध यह भी नहीं कहते कि बुद्ध की शक्ति पर श्रद्धा। क्योंकि बुद्ध की शक्ति पर श्रद्धा तो फिर किसी तरह का परालंबन बन जाएगी। फिर तुम परतंत्र हो जाओगे । और परतंत्रता संसार है। इसलिए बुद्ध कहते हैं, अप्प दीपो भव ! अपने दीए खुद बनो। अपने पर श्रद्धा करो । बुद्ध कहते हैं, मैं तुम्हारी श्रद्धा तुममें जगा दूं, मेरा काम पूरा हो गया। मैं फिर बीच से हट जाऊं । और देखो मैं कब से संग्राम - भेरी बजा रहा हूं, सुनो। तभी उन्होंने ये गाथाएं कही थीं अप्पमादरता होथ स-चित्तमनुरक्खथ । दुग्गा उद्धरथत्तानं पंके सत्तोव कुंजरो ।। सचे लभेथ निपकं सहायं सद्धिं चरं साधुविहारिधीरं । अभिभुय्य सब्बानि परिस्सयानि चरेय्य तेनत्तमनो सतीमा ।। नो चे लभेथ निपकं सहायं सिद्धिं चरं साधुविहारिधीरं । राजाव रट्टं विजितं पहाय एको चरे मातंगरञेव नागो ।। एकस्स चरितं सेय्यो नत्थि बाले सहायता । एको चरे न च पापानि कयिरा। अप्पोस्सुक्को मातंगरज्ञेव नागो ।। सुखं याव जरा सीलं सुखा सद्धा पतिट्ठिता । सुखो पञ्ञाय पटिलाभो पापानं अकरणं सुखं।। 336 'अप्रमाद में रत होओ।' जागो । अप्रमाद यानी सोओ मत। बहुत सो लिए ! 'अप्रमाद में रत होओ, अपने चित्त की रक्षा करो।' अपने चैतन्य की रक्षा करो। जड़ मत बनो । चैतन्य को स्मरण रखो । चैतन्य को सुलगाओ। चैतन्य को निखारो। जिस-जिस भांति ज्यादा चेतना पैदा हो, उस-उस भांति सब उपाय करो। जिस भांति मूर्च्छा होती हो, वे उपाय छोड़ो। जिन कारणों से जड़ता पैदा होती हो, वे कारण छोड़ो । 'अप्रमाद में रत होओ, अपने चित्त की रक्षा करो, दलदल में फंसे हाथी की तरह तुम भी अपना उद्धार कर सकोगे।' ‘यदि साथ चलने वाला कोई बुद्धिमान अनुभवी मिल जाए, तो सभी विघ्नों को

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