Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 347
________________ एस धम्मो सनंतनो क्या न करूं ? अब युद्ध में कहीं सोच-विचार का मौका होता है ! युद्ध में तो वही जीतता है जो सोच-विचार में नहीं पड़ता, जो सीधा जूझ जाता है। युद्ध में तो वही जीतता है जो क्षण को भी सोच-विचार में नहीं खोता, क्योंकि क्षण गया कि तुम पिछड़ गए, दूसरा हाथ मार लेगा। वहां तो प्रतिपल जीना पड़ता है। पुराना योद्धा था, पुराना सिपाही था वह हाथी, उसे क्षण देर न लगी । वह तो ऐसी मस्ती और ऐसी सरलता और सहजता से बाहर आया जैसे कि वहां कोई कीचड़ थी ही नहीं, और जैसे कि वह कभी फंसा ही न था । जब बुद्ध को ज्ञान हुआ और किसी ने पूछा कि आपको क्या मिला ? तो वह हंसे, उन्होंने कहा, मिला कुछ भी नहीं, क्योंकि मैंने कभी कुछ खोया ही नहीं था । मिला कुछ भी नहीं, क्योंकि जो मेरे पास था बस उसका मुझे पता चला ; मिला कुछ भी नहीं । कहते हैं, झेन फकीर बोकोजू जब समाधि को उपलब्ध हुआ तो हंसने लगा और फिर जिंदगीभर हंसता रहा। जब भी कोई कुछ पूछे, तो वह हंसे। लोग उससे पूछते थे, आप हंसते क्यों हैं? हर बात में हंसते क्यों हैं? वह कहता है, इसलिए हंसता हूं कि कोई भी यहां फंसा नहीं है और सभी को यह खयाल है कि लोग फंसे हैं। कीचड़ नहीं और लोग फंसे हैं। मान्यता । तुमने देखा, धन तुम्हें पकड़े हुए है ? धन तुम्हें पकड़ता नहीं। तुम धन को क्या खाक पकड़ोगे? कैसे पकड़ोगे ? सिर्फ एक भ्रांति है। धन तुम्हारा नहीं है। तो नहीं थे तब भी धन था, तुम नहीं रहोगे तब भी धन होगा। जमीन का टुकड़ा कहते हो मेरा है, तुम्हारे होने से कुछ लेना-देना नहीं, जमीन को पता ही नहीं कि आप आए और गए; कब आए, कब गए, कुछ पता नहीं है। जमीन का टुकड़ा तुम्हें नहीं पकड़ता है, तुम कैसे पकड़ोगे ? बस सिर्फ एक खयाल है - मेरा ! और सारा खयाल खयाल का मजा है। एक आदमी के घर में आग लग गयी और वह छाती पीटकर रोने लगा। और किसी ने कहा, मत रो पागल, तुझे पता नहीं कि तेरे बेटे ने कल मकान तो बेच दिया; रात सौदा हो गया है। बस आंसू सूख गए, वह हंसने लगा। वह बोला, ऐसा ! यह तो बड़ा अच्छा हुआ ! तो मकान बिक गया? अब भी मकान जल रहा है, वैसे ही जल रहा है, और भी ज्यादा जल रहा है, मगर अब रोना-धोना नहीं हो रहा है। तभी बेटा भागा आया, उसने कहा कि आप खड़े क्या देख रहे हैं, लुट गए ! उसने कहा, अरे, लुट गए और किसी ने तो मुझे कहा मकान बेच दिया! उसने कहा, बात हुई थी, लेकिन बयाना आज होने का था। फिर छाती पीटने लगा । मकान वही है, आदमी वही है, बस बीच में मेरा नहीं है ऐसा खयाल आ गया था तो आंसू रुक गए। अब मेरा है तो फिर आंसू आ गए। जो हमारा जीवन जिसे हम कहते हैं, वह हमारी धारणा मात्र है। 334

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