Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 328
________________ जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में के धागे में जोड़ते हैं। उनके जीवन में बुद्धिमत्ता पैदा होती है। मगर एक और इससे भी ऊपर बोध है, जो बुद्धिमत्ता से भी पार है, जिसको हम प्रज्ञा कहते हैं। फूलों को इकट्ठा कर लो, ढेर लंगाओ, तो भी सड़ जाएंगे। और माला बनाओ, तो भी सड़ जाएंगे। फूल क्षणभंगुर हैं। इनको सम्हालने का यह ढंग नहीं है। इनको बचाने का यह ढंग नहीं है। फूल तो समय में खिलते हैं। इनके भीतर से शाश्वत को खोजना जरूरी है। ताकि इसके पहले कि फूल कुम्हला जाएं, तुम्हारे हाथ में ऐसा इत्र आ जाए जो कभी नहीं कुम्हलाता। फलों को संगहीत करने से कुछ लाभ नहीं-ढेर लगाने से तो जरा भी लाभ नहीं है, नुकसान ही है, क्योंकि जिनसे आज गंध उठ रही है, उन्हीं से कल दुर्गंध उठने लगेगी। फूल अगर इकट्ठे किए तो सड़ेंगे। यहां हर चीज सड़ती है। इसलिए बुद्धिमान आदमी फूल इकट्ठे नहीं करता। इसके पहले कि फूल सड़ जाएं, उनकी माला बनाता है। लेकिन मालाएं भी इकट्ठी नहीं करता, इसके पहले कि मालाएं सड़ जाएं, उनसे इत्र निचोड़ता है। इत्र निचोड़ने का अर्थ होता है, असार-असार को अलग कर दिया, सार-सार को सम्हाल लिया। हजारों फूलों से थोड़ा सा इत्र निकलता है। फिर फूल कुम्हलाते हैं, इत्र कभी नहीं कुम्हलाता। फिर फूल समय के भीतर पैदा हुए, समय के भीतर ही समा जाते हैं, इत्र शाश्वत में समा जाता है। इत्र शाश्वते है। एस धम्मो सनंतनो। जीवन के छोटे-छोटे अनुभव के फूल, इनसे जब तुम असार को छांट देते हो और सार को इकट्ठा कर लेते हो, तो तुम्हारे हाथ में धर्म उपलब्ध होता है-शाश्वत धर्म, सनातन धर्म। तुम्हारे हाथ में जीवन का परम नियम आ जाता है। ___ मूढ़ ढेर लगाता है, बुद्धिमान माला बनाता है, और जिसे बुद्धत्व की कला आ गयी—प्रज्ञावान-असार को छोड़ देता है, सार को इकट्ठा कर लेता है। दृश्य को पकड़ता नहीं, अदृश्य को पकड़ लेता। देखता, फूल में गंध का सूत्र क्या है, उसी को बचा लेता। और बहुत कुछ है, उसका कोई मूल्य नहीं है। हजारों फूल में बूंदभर इत्र निकलता है, लेकिन वही इत्र फूलों की गंध था। फूलों में तो कुछ भी न था, वही इत्र हजारों में फैला था तो गंध बनी थी, उसे निचोड़ लिया। समय के भीतर से शाश्वत को निचोड़ लिया। यही इत्र निर्वाण है। यही इत्र मुक्तिदायी है। यही तुम्हारे जीवन को परम सुगंध से भर जाता है। ये जो बुद्ध की छोटी-छोटी कहानियां मैं तुमसे कह रहा हूं, इसे इस नजर से देखना। छोटी-छोटी घटनाएं हैं, तुम्हारे जीवन में भी घटती हैं, सबके जीवन में घटती हैं। जीवन घटनाओं का जोड़ है। घटनाएं ही घटनाएं हैं, रोज घट रही हैं। तुम भी इन्हीं घटनाओं के भीतर से गुजरते हो-सुबह-सांझ; दफ्तर में, बाजार में, घर में, खेत में, खलिहान में; भीड़ में, अकेले में; यही घटनाएं घट रही हैं लेकिन तुम अभी तक इनसे इत्र निचोड़ने की कला नहीं सीख पाए। या तो तुमने घटनाओं के ढेर 315

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