Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 330
________________ जीवन का परम सत्य : यहीं, अभी, इसी में उसने बहुत प्रयास किए, लेकिन कीचड़ से अपने को न निकाल सका सो न निकाल सका। राजा के सेवकों ने भी बहुत चेष्टा की, पर सब असफल गया। ___ उस प्रसिद्ध हाथी की ऐसी दुर्दशा देख सभी दुखी हुए। तालाब पर बड़ी भीड़ इकट्ठी हो गयी। वह हाथी पूरी राजधानी का चहेता था। गांवभर में उसके प्रेमी थे, बाल-वृद्ध सभी उसे चाहते थे। उसकी आंखों और उसके व्यवहार से सदा ही बुद्धिमानी परिलक्षित होती थी। . राजा ने अनेक महावत भेजे, पर वे भी हार गए। कोई उपाय ही न दिखायी देता था। तब राजा स्वयं गया। वह भी अपने पुराने सेवक को इस भांति दुख में पड़ा देख बहुत दुखी था। राजा को आया देख तो सारी राजधानी तालाब पर इकट्ठी हो गयी। फिर राजा को बद्धरेक के पुराने महावत की याद आयी। वह भी अब वृद्ध हो गया था। राज्य की सेवा से निवृत्त हो गया था और निवृत्त होकर भगवान बुद्ध के उपदेशों में डूबा रहता था। उसके प्रति भी राजा के मन में बहुत सन्मान था। सोचा, शायद वह बूढ़ा महावत ही कुछ कर सके। जन्म-जन्म का जैसे इन दोनों का साथ था-इस हाथी का और महावत का। बुद्ध ने अपनी कहानियों में कहा भी है कि तू इस बार ही इस हाथी के साथ नहीं है, पहले भी रहा है। यहां सब जीवन जुड़ा हुआ है। फिर इस जीवन तो पूरे जीवन वह हाथी के साथ रहा था। हाथी उसी के साथ बड़ा हुआ था, उसी के साथ जवान हुआ था, उसी के साथ बूढ़ा हो गया था। हाथी को हर हालत में देखा था- शांति में और युद्ध में, और हाथी की रग-रग से परिचित था। राजा को याद आयी, शायद वह बूढ़ा महावत ही कुछ कर सके। उसे खबर दी गयी। वह बूढ़ा महावत आया। उसने अपने पुराने अपूर्व हाथी को कीचड़ में फंसे देखा। वह हंसा, खिलखिलाकर हंसा और उसने किनारे से संग्राम-भेरी बजवायी। युद्ध के नगाड़ों की आवाज सुन जैसे अचानक बूढ़ा हाथी जवान हो गया और कीचड़ से उठकर किनारे पर आ गया। वह जैसे भूल ही गया अपनी वृद्धावस्था और अपनी कमजोरी। उसका सोया योद्धा जाग उठा और यह चुनौती काम कर गयी। फिर उसे क्षण भी देर न लगी। __ अनेक उपाय हार गए थे, लेकिन यह संग्राम-भेरी, ये बजते हुए नगाड़े, उसका सोया हुआ शौर्य जाग उठा। उसका शिथिल पड़ गया खून फिर दौड़ने लगा। वह भूल गया एक क्षण को-यादें आ गयी होंगी पुरानी—फिर जवान हो उठा। क्षण की भी देर न लगी-सुबह से सांझ हुई जा रही थी, सब उपाय हार गए थे-और वह ऐसी मस्ती और ऐसी सरलता और सहजता से बाहर आया कि जैसे न वहां कोई कीचड़ हो और न वह कभी फंसा ही था। किनारे पर आकर वह हर्षोन्माद में ऐसे चिंघाड़ा जैसा कि वर्षों से लोगों ने उसकी चिंघाड़ सुनी ही नहीं थी। वह हाथी बड़ा आत्मवान था। वह हाथी संकल्प का मूर्तरूप था। भगवान के बहुत से भिक्षु भी उस बूढ़े महावत के साथ यह देखने तालाब के 317

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