Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 333
________________ एस धम्मो सनंतनो और आदर और कूड़ा-करकट नहीं बचाया, क्योंकि वह तो सब मौत छीन लेती। जो मौत छीन लेती है, उसने बचाया ही नहीं। उसने वही बचाया, जिस पर मौत का कोई बस नहीं है। मौत शरीर को तो मार देती है, इसलिए उसने शरीर से मोह न रखा। न हन्यते हन्यमाने शरीरे, उसने तो उसकी तरफ देखा जो शरीर के मारे जाने से भी नहीं मरता। उसने तो प्रेम उससे जोड़ा, उसने तो चाहत उसकी की, जो शरीर के छूट जाने पर भी नहीं छूटता। उसने मिट्टी के दीयों में आसक्ति नहीं लगायी, उसने तो ज्योति में आसक्ति बांधी-जो सदा रहेगी, सदा थी। उसने समय के भीतर शाश्वत को निचोड़ा। उसने फूल नहीं पकड़े, उसने इत्र; उसने जल्दी-जल्दी इत्र निचोड़ा। इत्र साथ जाएगा, फूल यहीं पड़े रह जाते हैं। ध्यान साथ जाएगा, धन यहीं पड़ा रह जाता है। उसने सिकंदर नहीं बनना चाहा, उसने बुद्ध बनना चाहा, महावीर बनना चाहा, कृष्ण बनना चाहा। उसने चाहत विराट की की। संन्यास का इतना ही अर्थ होता है। उसने देख लिया लोगों को बूढ़ा होते। अगर जवान आदमी के पास दृष्टि हो, तो वह यह देखकर कि कोई बूढ़ा हो रहा है, समझ लेगा कि मुझे बूढ़ा होना है; इसलिए अभी से सोचकर चलो। अभी से इस हिसाब से चलो कि यह बुढ़ापा आए भी तो मुझसे कुछ छीन न पाए। जिसने होश से देखा, वह मुर्दा को देखकर जान लेता है कि मेरी भी मौत आ रही है-चल पड़ी है, आती ही होगी, आज-कल की बात है, समय, थोड़ा देर-अबेर की बात है, आती ही होगी–इसकी आ गयी, मेरी भी आती होगी; तो इसके पहले मैं घर तैयार कर लूं। मैं कुछ ऐसा.बना लूं जो मौत मुझसे नहीं छीन पाएगी। तो बुद्ध ने उस हंसते भिक्षु को कहा-मत हंस, भिक्षु, तू भी ऐसा ही बूढ़ा हो जाएगा। च्वांग्त्सू निकलता था एक मरघट से। एक खोपड़ी पड़ी थी, उसका पैर लग गया-सुबह थी, धुंधलका था, अभी रोशनी हुई नहीं थी, सूरज निकला नहीं था—उसने झुककर प्रणाम किया उस खोपड़ी को, साष्टांग लेटकर नमस्कार किया। उसके शिष्यों ने कहा, आप यह क्या करते हैं? इस खोपड़ी को नमस्कार कर रहे हैं! उसने कहा, ऐसी ही मेरी खोपड़ी पड़ी रहेगी, लोगों के पैर लगेंगे, मैं इसको नमस्कार कर रहा हूं, इसने मुझे याद दिला दी कि अपनी क्या दशा हो जाएगी। इसने मुझे बड़ा बोध दिया, इसलिए धन्यवाद दे रहा हूं। और फिर खयाल रखो, उसने अपने शिष्यों से कहा, यह खोपड़ी किसी साधारण आदमी की खोपड़ी नहीं-क्योंकि वह मरघट बड़े लोगों का मरघट था, जैसे दिल्ली में राजघाट, ऐसा बड़ा मरघट था, वहां खास-खास लोग ही दफनाए जाते थे तो उसने कहा, यह कोई छोटे-मोटे आदमी की खोपड़ी नहीं है, अगर यह जिंदा होता और इसके सिर में पैर लग गया होता, तो आज अपनी खैर नहीं थी! यह 320

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