Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 308
________________ हम अनंत के यात्री हैं छोटा-मोटा क्या करना! जब चोरी ही करनी हो, तो फिर कौड़ियों की क्या करनी! फिर ठीक से निंदा करो। फिर दिल खोलकर निंदा करो और मेरा आशीर्वाद तुम्हारे साथ है, इसलिए चिंता की कोई जरूरत नहीं है। 'और कहा गया है कि गुरु की निंदा करने वाले को कहीं ठौर नहीं।' वह किसी डरे हुए गुरु ने कहा होगा, मैं नहीं कहता। मैं तो कहता हूं, फिक्र छोड़ो, ठौर मैं हूं तुम्हारी। तुम करो निंदा जितनी तुम्हें करनी हो, मैं तुम पर नाराज नहीं हूं, और कभी नाराज नहीं होऊंगा। अगर तुम्हें इसी में मजा आ रहा है, अगर यही तुम्हारा स्वभाव है, अगर यही तुम्हारी सहजता है कि इससे ही तुम्हें कुछ मिलता मालूम पड़ता है, तो मैं बाधा न बनूंगा; फिकर छोड़ो कि गुरु की निंदा करने वाले को कहीं ठौर नहीं। मैं तुमसे कहता हूं, मैं हूं ठौर तुम्हारा। तुम्हें जितनी निंदा करनी हो, करो। वह जिन्होंने कहा होगा, कमजोर गुरु रहे होंगे। निंदा से डरते रहे होंगे। मेरी निंदा से मुझे कोई भय नहीं है। तुम्हारी निंदा से मेरा कुछ बनता-बिगड़ता नहीं है। और पराए तो मेरी निंदा करते ही हैं, अपने करेंगे तो कम से कम थोड़ी कुशलता से करेंगे-यह भी आशा रखी जा सकती है। करो! मगर एक बात खयाल रखना, इससे तुम्हारा विकास नहीं होता है। इसलिए मुझे दया आती है। इससे तुम्हें कोई गति नहीं मिलती। मेरी निंदा करने से तुम्हें क्या लाभ होगा? इस पर ध्यान करो। थोड़े स्वार्थी बनो। थोड़ी अपनी तो सोचो कि मुझे क्या लाभ होगा? यह समय मेरा व्यर्थ जाएगा। अब कृष्णप्रिया यहां वर्षों से है, और मैं समझता हूं, वह यहां न होती तो कुछ हानि नहीं थी-कुछ लाभ उसे हुआ नहीं; व्यर्थ ही यहां है; यहां होने न होने से कुछ मतलब नहीं है। कृष्णप्रिया का ही दूसरा प्रश्न है: मैं कभी-कभी आश्रम से भागना चाहती हूं, लेकिन आपसे नहीं भागना चाहती। व्यवस्था जो अनुशासन हम पर लादती है, वह मुझे सहन नहीं होता। क्या यह आरोपित अनुशासन आत्मानुशासन के विकास में बाधा नहीं है? | 'मैं कभी-कभी आश्रम से भागना चाहती हूं, लेकिन आपसे नहीं भागना चाहती।' - मेरा कोई कसूर! मेरी कोई भूल-चूक! मेरा कोई कर्मों का लेना-देना है! और फिर अगर मुझसे नहीं भागना चाहती तो कोई अड़चन नहीं, मुझे अपने हृदय में रखो और कहीं भी रहो। यह आश्रम भी तुम भाग जाओगी तो इतना ही प्रसन्न होगा, जितनी तुम प्रसन्न होओगी। तुम्हारे होने से यहां कोई भी प्रसन्न नहीं है, यह खयाल में ले 295

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