Book Title: Dhammapada 10
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 281
________________ एस धम्मो सनंतनो और तो होगा भी क्या! भगवान के पास जाओगे तो ध्यान में बैठना ही पड़ेगा। पहले खेलने-खेलने में आए होंगे; पहले यह आदमी प्यारा लगा था, इसलिए आए होंगे; पहले इस आदमी के पास बैठकर अच्छा लगा था, इसलिए आए होंगे; इसकी छाया मधुर लगी थी, इसलिए आए होंगे। पर धीरे-धीरे इस आदमी के पास ध्यान की जो वर्षा हो रही है, धीरे-धीरे पूछने लगे होंगे, उत्सुक होने लगे होंगे, पूछा होगा, हम आप जैसे कैसे हो जाएं? छोटे बच्चे अक्सर पूछ लेते हैं कि हम आप जैसे कैसे हो जाएं? ऐसा सौंदर्य हमें कैसे मिले? आंखों में ऐसी सुंदर झील हमारे कब हो? कैसे हो? चलें, उठे, बैठे, तो ऐसा प्रसाद हमसे कैसे झलके? आपने यह कहां पाया? कैसे पाया? जिज्ञासा की होगी, फिर ध्यान में भी बैठने लगे। उनकी सरल श्रद्धा देखते ही बनती थी। श्रद्धा दो तरह की होती है। एक होती है सरल श्रद्धा। सरल श्रद्धा का अर्थ होता है-संदेह था ही नहीं पहले से, हटाना कुछ भी नहीं पड़ा, श्रद्धा का झरना बह ही रहा था। और एक होती है जटिल श्रद्धा। संदेह का रोग पैदा हो गया है, अब संदेह को हटाना पड़ेगा; चेष्टा करनी पड़ेगी, तब श्रद्धा पैदा होगी। छोटे बच्चे अक्सर सरल श्रद्धा में उतर जाते हैं, बड़ों के लिए श्रद्धा जटिल काम है। संदेह जग गया है, वे करें भी तो क्या करें। अब पहले तो संदेह से लड़ना पड़ेगा, पहले तो संदेह को तोड़ना पड़ेगा, पहले तो संदेह को उखाड़ फेंकना पड़ेगा। यह घास-पात जो संदेह की ऊग गयी है, यह न हटे तो श्रद्धा के गुलाब लगें भी न। तो पहले उन्हें संदेह को उखाड़ना पड़ेगा। उनकी अधिक शक्ति संदेह से लड़ने में लग जाती है। तब कहीं श्रद्धा पैदा हो पाती है। जटिल है। छोटे बच्चों को तो सरल है। मगर छोटे बच्चों को हम बिगाड़ देते हैं। अगर दुनिया में मां-बाप थोड़े ज्यादा समझदार हों, तो हम बच्चों को कुछ भी ऐसा न करेंगे जिससे उनकी सरल श्रद्धा बिगड़ जाए। हम कहेंगे कि तुम अपनी सरल श्रद्धा को बचाए रखो, कभी कोई मिलेगा आदमी, कभी कोई मिलेगी घड़ी, जब तुम्हारा तालमेल बैठ जाएगा किसी से, उसी सरल श्रद्धा के आधार पर तुम किसी बुद्ध को, किसी जिन को, किसी कृष्ण को, किसी क्राइस्ट को पहचान लोगे। हम तुम्हारी श्रद्धा खराब न करेंगे। लेकिन हम बच्चों की गर्दन पकड़ लेते हैं। इसके पहले कि उनकी सरल श्रद्धा उन्हें जगत के विस्तार में ले जाए और वे कहीं किसी बुद्ध के चरणों में शरण में बैठे, हम उन्हें पहले ही झूठी श्रद्धा थोप देते हैं। झूठी श्रद्धा थोप देने के कारण संदेह पैदा होता है। इस गणित को ठीक से समझ लेना। संदेह पैदा क्यों होता है दुनिया में? संदेह पैदा होता है झूठी श्रद्धा थोप देने के कारण। छोटा बच्चा है, तुम कहते, मंदिर चलो। छोटा बच्चा पूछता है, किसलिए? अभी मैं खेल रहा हूं, मैं मजे में हूं। तुम कहते हो, मंदिर में और भी ज्यादा आनंद आएगा। और छोटे बच्चे को बिलकुल नहीं आता। तुम तो श्रद्धा सिखा रहे हो और 268

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