________________
एस धम्मो सनंतनो
बार तुमने क्रोध किया है, कितनी बार लोभ किया है, कितनी बार मोह किया है, कितनी बार राग किया है, पाया कुछ? गांठ गठियाया कुछ? मुट्ठी बांधे बैठे हो, मुट्ठी के भीतर कोई संपदा इकट्ठी हुई?
न कोई वादा न कोई यकीं न कोई उम्मीद
मगर हमें तो तेरा इंतजार करना था कैसी जिद पकड़कर बैठ गए हो इंतजार करने की। किस का इंतजार कर रहे हो? इस राह से कोई गुजरता ही नहीं। तुम जिस राह पर बैठे हो, वह किसी की भी रहगुजर नहीं।
बुद्ध कहते हैं, 'इस जीवन की मृग-मरीचिका के समान प्रकृति को पहचान।'
प्यासे को मरुस्थल में भी पानी दिखाई पड़ जाता है। वह मृग-मरीचिका है। है नहीं वहां कहीं पानी। प्यास की कल्पना से ही दिखाई पड़ जाता है। प्यास बहुत सघन. हो, तो जहां नहीं है वहां भी तुम आरोपित कर लेते हो।
तुमने भी इसे अनुभव किया होगा। तुम्हारे भीतर जो चीज बहुत ज्यादा सघन होकर पीड़ा दे रही है, जिसे तुम खोज रहे हो, वह दिखाई पड़ने लगती है। कभी तुम किसी की राह देख रहे हो घर के अंदर बैठे, कोई प्रियजन आ रहा है, कोई मित्र आ रहा है, प्रेयसी या प्रेमी आ रहा है, पत्ता भी खड़कता है तो ऐसा लगता है कि उसके पैर की आवाज सुनाई पड़ गई। फिर उठकर देखते हो। पोस्टमैन द्वार पर आकर खड़ा हो जाता है, तो समझते हो कि प्रेमी आ गया। प्रसन्न होकर, धड़कती छाती से द्वार खोलते हो। कोई नहीं भी आता, न पत्ता खड़कता है, न पोस्टमैन आता है, न द्वार से कोई निकलता है, तो तुम कल्पना करने लगते हो कि शायद आवाज सुनी, शायद किसी ने द्वार खटखटाया, या कोई पगध्वनि सुनाई पड़ी सीढ़ियों पर चढ़ती हुई। भागकर पहुंचते हो, कोई भी नहीं है।
न कोई वादा न कोई यकीं न कोई उम्मीद मगर तुम कल्पना किए चले जाते हो। मृग-मरीचिका का अर्थ है, जहां नहीं है वहां देख लेना। और जो व्यक्ति वहां देख रहा हो जहां नहीं है, वह वहां देखने से वंचित रह जाएगा जहां है। तो मृग-मरीचिका जीवन के आत्यंतिक सत्य को देखने में बाधा बन जाती है। तुम दौड़ते रहते हो उस तरफ जहां नहीं है। और तुम उस तरफ देखते ही नहीं लौटकर जहां है।
- जिसे तुम खोज रहे हो, वह तुम्हारे भीतर छुपा है। जिसे तुम पाने निकले हो, उसे तुमने कभी खोया ही नहीं। उसे तुम लेकर ही आए थे। परमात्मा किसी को दरिद्र भेजता ही नहीं। सम्राट के अलावा वह किसी को कुछ और बनाता ही नहीं। फिर भिखमंगे तुम बन जाते हो, वह तुम्हारी ही कुशलता है। वह तुम्हारी ही कला है। तुम्हारी मौज। परमात्मा तुम्हें इतनी स्वतंत्रता देता है कि तुम अगर भिखमंगे भी होना चाहो तो उसमें भी बाधा नहीं डालता।
116