Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 260
________________ प्रेम की आखिरी मंजिल : बुद्धों से प्रेम नहीं हो पाया है तो बैठकर कांटे को पकड़कर मत पूजते रहो। नहीं प्रेम संभव हुआ, चिंता छोड़ो। ध्यान संभव है। और ध्यान के भी खतरे हैं और सुविधाएं भी। खतरा यही है कि श्रम करना होगा, चेष्टा करनी होगी। प्रयास और साधना करनी होगी। संकल्प करना होगा। अगर जरा भी शिथिलता की तो ध्यान न सधेगा। अगर जरा भी आलस्य की तो ध्यान न सधेगा। अगर ऐसे ही सोचा कि कुनकुने-कुनकुने कर लेंगे, तो न सधेगा। जलना पड़ेगा। सौ डिग्री पर उबलना पड़ेगा। यह तो कठिनाई है। लेकिन फायदा भी है कि थोड़ा भी ध्यान सधे, तो साथ में होश भी सधता है। क्योंकि प्रयास, साधना, संकल्प। ___इसलिए ध्यान सधे, तो कभी भी कारागृह नहीं बनता। कठिनाई है सधने की। प्रेम सध तो जाता है बड़ी आसानी से, लेकिन जल्दी ही जंजीरें ढल जाती हैं। ध्यान सधता है मुश्किल से, लेकिन सध जाए तो सदा ही मोक्ष और सदा ही मुक्ति के आकाश की तरफ ले जाता है। __ और दुनिया में दो तरह के लोग हैं। एक तो वे कि अगर प्रेम न सधा, तो उन्होंने ध्यान को साध लिया। और जो ऊर्जा प्रेम में जाती, वही सारी ध्यान में संलग्न हो गई। या जो ध्यान न सधा, तो उन्होंने सारी ऊर्जा को प्रेम में समर्पित कर दिया। या तो भक्त बनो, या ध्यानी। ये एक तरह के लोग हैं। दूसरे तरह के लोग हैं, उनसे प्रेम न सधा, तो ध्यान की तरफ तो न गये, बस प्रेम का रोना लेकर बैठे हैं। रो रहे हैं कि प्रेम न सधा। और उन्हीं की तरह के दूसरे लोग भी हैं कि ध्यान न सधा, तो बस वे बैठे हैं, रो रहे हैं उदास मंदिरों में, आश्रमों में कि ध्यान न सधा। वे प्रेम की तरफ न गये। ___ मैं तुमसे कहता हूं, सब साधन तुम्हारे लिए हैं, तुम किसी साधन के लिए नहीं। प्रेम से सधे, प्रेम से साध लेना। ध्यान से सधे, ध्यान से साध लेना। साधन का थोड़े ही मूल्य है। तुम बैलगाड़ी से यहां मेरे पास आए, कि पैदल आए, कि ट्रेन से आए, कि हवाई जहाज से आए, आ गये, बात खतम हो गई। तुम कैसे आए इसका क्या प्रयोजन है? पहुंच गये, बात समाप्त हो गई। ___ ध्यान रखना पहुंचने का। फिर प्रेम से हो कि ध्यान से हो, भक्ति से हो कि ज्ञान से हो। इस उलझन में बहुत मत पड़ना। साधन को साध्य मत समझ लेना। साधन का उपयोग करना है। सीढ़ी से चढ़ जाना है और भूल जाना है। नाव से उतर जाना है और विस्मरण कर देना है नाव का। इतनी ही याद बनी रहे कि सब धर्म तुम्हारे लिए हैं। सब साधन, विधियां तुम्हारे लिए हैं। तुम्हीं गंतव्य हो। तुम्ही हो जहां पहुंचना है। तुमसे ऊपर कुछ भी नहीं। साबार ऊपर मानुस सत्य ताहार ऊपर नाहीं।। चंडीदास के ये शब्द हैं कि सबसे ऊपर मनुष्य का सत्य है। उसके ऊपर कुछ भी नहीं है। इसका यह मतलब नहीं है कि परमात्मा नहीं है। इसका इतना ही मतलब 241

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