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एस धम्मो सनंतनो जाता है जहर भी जीवन को बचाने के। तुम्हारी औषधि भी जीवन की जानलेवा हो जाती है। असली सवाल तुम्हारा है।
बुद्ध के जाने के बाद धर्म शाखा-प्रशाखाओं में बंटा। बंटना ही चाहिए। जब वृक्ष बड़ा होगा तो पींड़ ही पीड़ थोड़े ही रह जाएगा। शाखा-प्रशाखाओं में बंटेगा। पीड ही पीड़ बड़ी लूंठ मालूम पड़ेगी। उस वृक्ष के नीचे छाया किसको मिलेगी जिसमें पीड़ ही पीड़ हो? उससे तो खजूर का वृक्ष भी बेहतर। कुछ तो छाया,थोड़ी-बहुत कहीं पड़ती होगी। ____ वृक्ष तो वही शानदार है, वही जीवित है, जिसमें हजारों शाखाएं-प्रशाखाएं निकलती हैं। शाखाएं-प्रशाखाएं तो इसी की खबर हैं कि वृक्ष में हजार वृक्ष होने की क्षमता थी, किसी तरह एक में समा लिया है। हर्ज भी कुछ नहीं है। जितनी. शाखाएं-प्रशाखाएं हों उतना ही सुंदर। क्योंकि उतने ही पक्षी बसेरा कर सकेंगे। उतने ही पक्षी घोंसले बना सकेंगे। उतने ही यात्री विश्राम पा सकेंगे। उतनी ही बड़ी छाया होगी, उतनी ही गहन छाया होगी। धूप से तपे-मांदों के लिए आसरा होगा, शरण होगी।
जो वृक्ष लूंठ रह जाए, उसका क्या अर्थ हुआ? उसका अर्थ हुआ, वृक्ष बांझ है। उसमें फैलने की क्षमता नहीं है। जीवन का अर्थ है, फैलने की क्षमता। सभी जीवित चीजें फैलती हैं। सिर्फ मृत्यु सिकुड़ती है। मृत्यु सिकोड़ती है, जीवन फैलाता है। जीवन विस्तार है, एक से दो, दो से अनेक होता चला जाता है। परमात्मा अकेला था, फिर अनेक हुआ, क्योंकि परमात्मा जीवित था। अगर मुर्दा होता, तो अनेक नहीं हो सकता था। संसार को गाली मत देना, अगर तुम्हें मेरी बात समझ में आए तो तुम समझोगे कि संसार परमात्मा की शाखाएं-प्रशाखाएं है। तुम भी उसी की शाखा-प्रशाखा हो। इतना जीवित है कि चुकता ही नहीं, फैलता ही चला जाता है।
वृक्ष भारत में बड़े प्राचीन समय से जीवन का प्रतीक रहा है। बुद्ध के वृक्ष में बड़ी क्षमता थी, बड़ा बल था, बड़ी संभावना थी। अकेली पीड़ से कैसे बुद्ध का वृक्ष चिपटा रहता? जैसे-जैसे बढ़ा, शाखाएं-प्रशाखाएं हुईं। लेकिन ज्ञानी की दृष्टि में उन शाखाओं-प्रशाखाओं में कोई विरोध न था। वे सभी एक ही वृक्ष से जुड़ी थीं
और एक ही जड़ पर जीवित थीं। उन सभी का जीवन एक ही स्रोत से आता था। बुद्ध स्रोत थे। ज्ञानी ने इसमें कुछ विरोध न देखा। इसमें इतना ही देखा कि बुद्ध में बड़ी संभावना है। ___यह जरा हैरानी की बात है, सारी मनुष्य-जाति में बुद्ध ने जितनी संभावनाओं को जन्म दिया, किसी दूसरे आदमी ने नहीं दिया। __ महावीर के वृक्ष में केवल दो शाखाएं लगीं-दिगंबर, श्वेतांबर। बस। और उनमें भी कोई बहुत फासला नहीं है। क्षुद्र बातों का फासला है। कि कोई महावीर का श्रृंगार करके पूजता है, कोई महावीर को नग्न पूजता है। श्रृंगार के भीतर भी महावीर
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