Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 216
________________ प्रार्थना : प्रेम की पराकाष्ठा हो। तुम्हीं दीवाल बनकर खड़े हो। तुम गिर जाओ, उसका खुला आकाश सदा से ही मुक्त है। ___परमात्मा दूर नहीं है, तुम अकड़े खड़े हो। तुम्हारी अकड़ ही दूरी है। तुम्हारा नब जाना, तुम्हारा झुक जाना ही निकटता हो जाएगी। उपनिषद कहते हैं, परमात्मा दूर से दूर और पास से भी पास है। दूर, जब तुम अकड़ जाते हो। दूर, जब तुम पीठ कर लेते हो। दूर, जब तुम जिद्द कर लेते हो कि है ही नहीं। दूर, जब तुम कहते हो मैं ही हूं, तू नहीं है। पास, जब तुम कहते हो तू ही है, मैं नहीं हूं। जब तुम आंख खोलते हो। जब तुम अपने पात्र को-अपने हृदय के पात्र को उसके सामने फैला देते हो, तब तुम भर जाते हो, हजार-हजार खजानों से। प्रभु तो रोज ही आ सकता है। आता ही है। उसके अतिरिक्त और कौन आएगा? जब तुम नहीं पहचानते, तब भी वही आता है। जब तुम पहचान लेते हो, धन्यभाग! जब तुम नहीं पहचानते, तब भी उसके अतिरिक्त और कोई न कभी आया है, न आएगा। वही आता है। क्योंकि सभी शक्लें उसी की हैं। सभी रूप उसके। सभी स्वर उसी के। सभी आंखों से वही झांका है। तो अगर कभी एक बार ऐसी प्रतीति हो कि आगमन हुआ है, तो उस प्रतीति को गहराना, सम्हालना; उस प्रतीति को साधना, सुरति बनाना। और धीरे-धीरे कोशिश करो, जो भी आए उसमें उसको पहचानने की। पुरानी कहावत है, अतिथि देवता है। अर्थ है कि जो भी आए उसमें परमात्मा को पहचानने की चेष्टा जारी रखनी चाहिए। चाहे परमात्मा हजार बाधाएं खड़ी करे, तो भी तुम धोखे में मत आना। परमात्मा चाहे गालियां देता आए, तो भी तुम समझना कि वही है। मित्र में तो दिखाई पड़े ही, शत्रु में भी दिखाई पड़े। अपनों में तो दिखाई पड़े ही, परायों में भी दिखाई पड़े। रात के अंधेरे में ही नहीं, दिन के उजाले में भी। नींद और सपनों में ही नहीं, जागरण में भी। अभी तुम कली हो, और जितने पदचाप तुम्हें उसके सुनाई पड़ने लगें उतनी ही पखुड़ियां तुम्हारी खुलने लगेंगी। . तुम्हारी पीड़ा मैं समझता हूं। कभी-कभी उसकी झलक मिलती है और खो जाती है। कभी-कभी आता पास लगता है और पदध्वनियां दूर हो जाती हैं। लगता है मिला, मिला, और कोई सूत्र हाथ से छूट जाता है। चमन में फूल तो खिलते सभी ने देख लिए चमन में फूल तो खिलते सभी ने देख लिए सिसकते गुंचे की हालत किसी को क्या मालूम वह जो कली का रोना है, सिसकना है सिसकते गुंचे की हालत किसी को क्या मालूम पर वह तुम्हारी सभी की हालत है। सिसकते हुए गुंचे की हालत। रोती हुई कली की हालत। और कली तभी फूल हो सकती है जब अनंत के पदचाप उसे सुनाई 197

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