Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 248
________________ प्रेम की आखिरी मंजिल : बुद्धों से प्रेम 'चारों ओर मेरे घोर अंधेरा भूल न जाऊं द्वार तेरा।' प्रीतिकर है बात। अंधेरे में पूरी संभावना है कि द्वार भूल जाए। अंधेरे में द्वार का पता कहां है? अंधेरे में तो द्वार का सपना देखा है, द्वार कहां। लेकिन अगर इतनी याद बनी रहे, और इतनी प्रार्थना बनी रहे, और यह भीतर सुरति, स्मृति चलती रहे-भूल न जाऊं द्वार तेरा, तो यही स्मृति धीरे-धीरे द्वार बन जाती है। द्वार कहीं तुमसे बाहर थोड़े ही है। द्वार कहीं तुमसे भिन्न थोड़े ही है द्वार कोई ऐसी जगह थोड़े ही है जिसे खोजना है। द्वार तुमसे प्रगट होगा। तुम्हारे स्मरण से ही द्वार बनेगा। तुम्हारे सातत्य, सतत चोट से ही द्वार बनेगा। तुम्हारी प्रार्थना ही तुम्हारा द्वार बन जाएगी। जिसको नानक सुरति कहते हैं, कबीर सुरति कहते हैं, जिसको बुद्ध ने स्मृति कहा है, जिसको पश्चिम का एक बहुत अदभुत पुरुष गुरजिएफ सेल्फ रिमेंबरिंग कहता था-स्वयं की स्मृति, स्व स्मृति-वही तुम्हारा द्वार बनेगी। ___ अंधेरे की याद रखो। भूलने से अंधेरा बढ़ता है। याद रखने से घटता है। क्योंकि याद का स्वभाव ही रोशनी का है। स्मृति का स्वभाव ही प्रकाश का है। याद रखो-चारों ओर मेरे घोर अंधेरा। इसे कभी गीत की कड़ी की तरह गुनगुनाना मत, यह तुम्हारा मंत्र हो जाए। श्वास भीतर आए, बाहर जाए, इसकी तुम्हें याद बनी रहे। इसकी याददाश्त के माध्यम से ही तुम अंधेरे से अलग होने लगोगे। क्योंकि जिसकी तुम्हें याद है, जिसको तुम देखते हो, जो दृश्य बन गया, उससे तुम अलग हो गये, पृथक हो गये। 'भूल न जाऊं द्वार तेरा।' भक्त गहन विनम्रता में जीता है। द्वार मिल भी जाए तो भी वह यही कहेगा, भूल न जाऊं द्वार तेरा। क्योंकि वह जानता है कि मेरे किये तो कुछ होगा नहीं। मेरे किये तो सब अनकिया हो जाता है। मैं तो भवन बनाता हूं, गिर जाते हैं। मैं तो योजना करता हूं, व्यर्थ हो जाती है। मैं पूरब जाता हूं, पश्चिम पहुंच जाता हूं। अच्छा करता हूं, बुरा हो जाता है। कुछ सोचता हूं, कुछ घटता है। मेरे किये कुछ भी न होगा। भक्त कहता है, तू ही अगर, तेरी कृपा अगर बरसती रहे, तो ही कुछ संभव है। "भूल न जाऊं द्वार तेरा एक बार प्रभु हाथ पकड़ लो।' बहुत ही बढ़िया पंक्ति है। क्योंकि एक बार अगर प्रभु ने हाथ पकड़ लिया, तो फिर छूटता ही नहीं। क्योंकि उसकी तरफ से एक बार पकड़ा गया सदा के लिए पकड़ा गया। और एक बार तुम्हारे हाथ को उसके हाथ का स्पर्श आ जाए, तो तुम तुम न रहे। वह हाथ ही थोड़े ही है, पारस है। छूते ही लोहा सोना हो जाता है। लेकिन तुम्हें अथक टटोलते ही रहना पड़ेगा। वह हाथ मुफ्त नहीं मिलता है। वह हाथ उन्हीं को मिलता है जिन्होंने खूब खोजा है। वह हाथ उन्हीं को मिलता है 229

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