Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 237
________________ एस धम्मो सनंतनो की तरफ जो ले जाता है, वह है कामवासना, कीचड़। ऊपर की तरफ जो ले जाता है, वही है प्रेम, वही है प्रार्थना। काम को प्रेम में बदलो। ____ काम का अर्थ है, दूसरे से सुख मिल सकता है ऐसी धारणा। प्रेम का अर्थ है, किसी से सुख नहीं मिल सकता, और न कोई तुम्हें दुख दे सकता है। इसलिए दूसरे से लेने का तो कोई सवाल ही नहीं है। काम मांगता है दूसरे से। काम भिखारी है। काम है भिक्षा का पात्र। प्रेम है इस बात की समझ कि दूसरे से न कुछ कभी मिला है न मिलेगा। यह दूसरे के सामने भिक्षा के पात्र को मत फैलाओ। प्रेम है, तुम्हारे भीतर जो है उसे बांटो और दो। काम है मांगना, प्रेम है दान। जो तुम्हारे जीवन की संपदा है, उसे तुम दे दो, उसे तुम बांट दो। जैसे सुगंध बांटता है फूल, ऐसे तुम प्रेम को बांट दो। तो तुम्हारे जीवन में शील का जन्म होगा। बांटोगे तो तुम पाओगे, जितना बांटते हो उतनी बढ़ती जाती है, संपदा। जितना लुटाते हो, साम्राज्य बड़ा होता जाता है। केसरी और खुशरबी तो ढलती-फिरती छांव है इस जिंदगी के बाहर दिखाई पड़ने वाले साम्राज्य और सम्राट तो ढलती-फिरती छांव हैं। केसरी और खुशरबी तो ढलती-फिरती छांव है ___इश्क ही एक जाबिदां दौलत है इंसानों के पास ___ दौलत एक है, धन एक है, संपत्ति एक है। बाकी तो ढलती-फिरती छांव है। इश्क ही है एक जाबिदां दौलत-प्रेम ही एकमात्र संपदा है। काम है भिखारीपन और प्रेम है संपदा। काम से पैदा होगा अशील और प्रेम से पैदा होता है शील। तो तुम्हारा जीवन एक प्रेम का दीया बन जाए। और ध्यान रखना, प्रेम का दीया तभी बन सकता है जब तुम बहुत जागकर जीओ। जागने का तेल हो, प्रेम की बाती हो, तो परमात्मा का प्रकाश फैलता है। और तब जहां अंधेरा पाया था, वहां रोशनी हो जाती है; जहां कांटे पाए थे, वहां फूल हो जाते हैं; जहां संसार देखा था, वहां निर्वाण हो जाता है; जहां पदार्थ के सिवाय कभी कुछ न मिला था, वहीं परमात्मा का हृदय धड़कता हुआ मिलने लगता है। जीसस ने कहा है, उठाओ पत्थर और तुम मुझे छिपा हुआ पाओगे, तोड़ो चट्टान और तुम मुझे छिपा हुआ पाओगे। ऐसे भी हमने देखे हैं दुनिया में इंकलाब पहले जहां कफस था वहीं आशियां बना जहां पहले कारागृह था, हमने ऐसे भी इंकलाब देखे, ऐसी क्रांतियां देखीं, कि जहां कारागृह था, वहीं अपना निवास बना, घर बना। यह संसार ही, जिसको तुमने अभी कारागृह समझा है...अभी कारागृह है। संसार कारागृह है ऐसा नहीं, तुम्हारे देखने के ढंग अभी नासमझी के हैं, अंधेरे के हैं। 218

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