Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 245
________________ एस धम्मो सनंतनो भीतर की तरफ जाते हैं। जो दिखाई पड़ता था, अब उसमें रस नहीं रहा। अब तो उसी को देखना है जो देखता है। अब द्रष्टा की खोज शुरू हुई, दृश्य की नहीं। मूर्ति ऐसी थिर है, जरा भी कंपन का पता नहीं चलता। ऐसे ही भीतर बुद्ध की चेतना थिर हो गई है, निष्कंप हो गई है। जैसे हवा का एक झोंका भी न आए और दीये की लपट ठहर जाए। मूर्ति में हमने यह सब खोदा। मूर्ति तो एक प्रतीक है। अगर तुम उस प्रतीक का राज समझो, तो देखते-देखते मूर्ति को तुम भी मूर्ति जैसे हो जाओगे। अच्छा ही किया जिन्होंने बुद्ध की आज्ञा न मानी। बुद्ध बिलकुल ठीक ही कहते थे कि मूर्ति मत बनाना, क्योंकि मैं अमूर्त हूं। आकार मत ढालना, क्योंकि मैं निराकार हूं। तुम जो कुछ भी करोगे, गलत होगा। सीमा होगी उसकी, मैं असीम हूं। बुद्ध बिलकुल ठीक ही कहते थे। लेकिन यह बात दूसरे बुद्धों के लिए ठीक होगी, तुम सबका क्या होता? तुम सबके लिए तो निराकार की भी खबर आएंगी तो आकार से। तुम्हारे लिए तो निर्गुण की भी खबर आएगी तो सगुण से। तुम तो अनाहत नाद भी सुनोगे तो भी आहत नाद से ही। तुम तो वहीं से चलोगे न जहां तुम हो। जहां बुद्ध हैं, वहां तो पहुंचना है। वहां से तुम्हारी यात्रा न हो सकेगी। और बुद्ध के वचन जिन्होंने इकट्ठे किये, वैसे वचन पृथ्वी पर बहुत कम बोले गये हैं, जैसे वचन बुद्ध के हैं। जैसी सीधी उनकी चोट है और जैसे मनुष्य के हृदय को रूपांतरित कर देने की कीमिया है उनमें, वैसे वचन बहुत कम बोले गये हैं। खो सकते थे वचन। और बहुत बुद्ध भी हुए हैं बुद्ध के पहले, उनके वचन खो गये हैं। उनके शिष्यों में कोई गहरा आज्ञाकारी न था, ऐसा मालूम होता है। बड़ा दुर्भाग्य हुआ, बड़ी हानि हुई। कौन जाने उनमें से कौन सा वचन तुम्हें जगाने का कारण हो जाता, निमित्त बन जाता। तो मैं दोनों बातें कहता हूं। जिन्होंने मूर्तियां बनायीं, बुद्ध के वचन तोड़े, जिन्होंने बुद्ध के वचन इकट्ठे किये, उन्होंने बुद्ध के वचन तोड़े; लेकिन फिर भी मैं कहता हूं कि उन्होंने ठीक ही किया, अच्छा ही किया। और गहरे में मैं जानता हूं कि बुद्ध भी उनसे प्रसन्न हैं कि उन्होंने ऐसा किया। क्योंकि बुद्ध तो वही कहते हैं, जो वे कह सकते हैं, जो उन्हें कहना चाहिए। शिष्य को तो और भी बहुत सी बातें सोचनी पड़ती हैं, बुद्ध क्या कहते हैं वही नहीं। अंधेरे में भटकते हुए जो हजारों लोग आ रहे हैं, उनका भी विचार करना जरूरी है। बुद्धों के पास एक प्रेम का जन्म होता है। यद्यपि बुद्ध कहते हैं, प्रेम आसक्ति है, लेकिन बुद्धों के पास प्रेम की आखिरी मंजिल आती है। यद्यपि बुद्ध कहते हैं, मेरे प्रेम में मत पड़ना, पर कैसे बचोगे ऐसे आदमी से? जितना वे कहते हैं, मेरे प्रेम में मत पड़ना, उतना ही उनके प्रति प्रेम उमगता है, उतना ही उनके प्रति प्रेम बहता है। जितना वे तुम्हें सम्हालते हैं, उतना ही तुम डगमगाते हो। कठिन है बहुत। बुद्ध 226

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