Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 230
________________ जागरण का तेल + प्रेम की बाती = परमात्मा का प्रकाश यहां फर्क तुम्हें समझ में आ सकता है। शिष्यों का तो केवल चरित्र है, गुरु का शील है। शील अपना मालिक है, वह होश से पैदा होता है। चरित्र अपना मालिक नहीं है, वह अंधानुकरण से पैदा होता है। जब कभी तुम्हें जीवन में कोई शीलवान आदमी मिल जाए, तो समझ लेना यही चरण पकड़ लेने जैसे हैं। चरित्रवान के धोखे में मत आ जाना, क्योंकि चरित्रवान तो सिर्फ ऊपर-ऊपर है। भीतर बिलकुल विपरीत चल रहा है। फर्क कैसे करोगे? चरित्रवान को तुम हमेशा अकड़ा हुआ पाओगे। क्योंकि, इतना कर रहा हूं! तो अहंकार मजबूत होता है। चरित्रवान को तुम हमेशा तना हुआ पाओगे, तनाव से भरा पाओगे। क्योंकि कर रहा है, कर रहा है, कर रहा है। फल की अपेक्षा कर रहा है। शीलवान को तुम हमेशा विश्राम में पाओगे। शीलवान इसलिए नहीं कर रहा है कि आगे कुछ मिलने को है। शीलवान इसलिए कर रहा है कि करने में आनंद है। शीलवान को तुम प्रफुल्लित पाओगे। शीलवान अपनी तपश्चर्या की चर्चा न करेगा। अपने उत्सव के गीत गाएगा। शीलवान तुम्हें आनंदित मालूम पड़ेगा। चरित्रवान तुम्हें बड़ा तना हुआ और कष्ट झेलता हुआ मालूम पड़ेगा। बारीक हैं फासले, लेकिन अगर तुमने नजर खोलकर रखी तो तुम्हें कठिनाई न होगी। चरित्रवान के पास तुम्हें दंभ की दुर्गंध मिलेगी। शीलवान के पास तुम्हें सरलता की सुगंध मिलेगी। शीलवान को तुम ऐसा पाओगे जैसा छोटा बालक, चरित्रवान को तुम बड़ा हिसाबी-किताबी पाओगे। वह एक-एक बात का हिसाब रखेगा। गणित में पक्का पाओगे, प्रेम में नहीं। और जहां गणित बहुत पक्का हो जाता है, वहां परमात्मा से दूरी बहुत हो जाती है। तुम चरित्रवान को तर्कयुक्त पाओगे। वह जो भी करेगा, तर्क से ठीक है इसलिए करेगा। शीलवान को तुम तर्कयुक्त न पाओगे, सहजस्फूर्त पाओगे। वह जो भी करेगा वह उसकी सहज-स्फुरणा है। ऐसा हुआ। शीलवान को तुम परमात्मा के हाथ में अपने को सौंपा हुआ पाओगे। चरित्रवान को तुम अपने ही हाथों में नियंत्रित पाओगे। चरित्रवान में नियंत्रण होगा, अनुशासन होगा। शीलवान में स्वातंत्र्य होगा, मुक्ति होगी। और सुगंध और दुर्गंध का फर्क होगा। दुश्चरित्र तो होना ही नहीं, चरित्रवान भी मत होना। अगर होना ही है, तो शीलवान होना। चरित्र है ऊपर से थोपा गया-आरोपण। शील है भीतर से आई हुई जीवन-धारा, भीतर से आया हुआ बोध। _ 'चंदन या तगर, कमल या जूही, इन सभी की सुगंधों से शील की सुगंध सर्वोत्तम है।' शील छोटे बच्चे जैसा है। छोटे बच्चों को फिर से गौर से देखना। बहुत कम लोग उन्हें गौर से देखते हैं। छोटे बच्चों को ठीक से पहचानना, क्योंकि वही संतों की भी पहचान बनेगी। तुमने कभी कोई छोटा बच्चा देखा जो कुरूप हो? सभी छोटे 211

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