Book Title: Dhammapada 02
Author(s): Osho Rajnish
Publisher: Rebel Publishing House Puna

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Page 193
________________ एस धम्मो सनंतनो वे मोक्ष की चर्चा करते हैं। जीसस ईश्वर-केंद्रित हैं, वे ईश्वर की चर्चा करते हैं। बुद्ध मनुष्य-केंद्रित हैं। जैसे मनुष्य से ऊपर कोई सत्य नहीं है बुद्ध के लिए। साबार ऊपर मानुस सत्य, ताहार ऊपर नाहीं। सबके ऊपर मनुष्य का सत्य है और उसके ऊपर कोई सत्य नहीं है। क्योंकि जिसने मनुष्य के सत्य को समझ लिया, उसे कुंजी मिल गई। सारे सत्यों के द्वार उसके लिए फिर खुले हैं। बुद्ध को भोजन बनाओ, पीओ, पचाओ, तो धीरे-धीरे तुम पाओगे तुम्हारे भीतर बुद्ध का अवतरण होने लगा। धीरे-धीरे तुम पाओगे तुम्हारे भीतर बुद्ध की प्रतिमा उभरने लगी। हर चट्टान छिपाए है बुद्ध की प्रतिमा अपने में। जरा छेनी की जरूरत है, हथौड़ी की जरूरत है। व्यर्थ को छांटकर अलग कर देना है। किसी ने माइकल एंजलो से पूछा-क्योंकि एक चर्च के बाहर एक पत्थर बहुत दिन से पड़ा था, उसे अस्वीकार कर दिया गया था, चर्च के बनाने वालों ने उपयोग में नहीं लिया था, वह बड़ा अनगढ़ था, माइकल एंजलो ने उस पर मेहनत की और उससे एक अपूर्व क्राइस्ट की प्रतिमा निर्मित की-किसी ने पूछा कि यह पत्थर तो बिलकुल व्यर्थ था, इसे तो फेंक दिया गया था, इसे तो राह का रोड़ा समझा जाता था, तुमने इसे रूपांतरित कर दिया! तुम अनूठे कलाकार हो! . माइकल एंजलो ने कहा, नहीं, तुम गलती कर रहे हो। जो मैंने पत्थर से प्रगट किया है, वह पत्थर में छिपा ही था, सिर्फ मैंने पहचाना। और जो व्यर्थ टुकड़े पत्थर के आसपास थे उनको छांटकर अलग कर दिया। यह प्रतिमा तो मौजूद ही थी। मैंने बनाई नहीं। मैंने सिर्फ सुनी आवाज। मैं गुजरता था यहां से, यह पत्थर चिल्लाया और इसने कहा कि कब तक मैं ऐसे ही पड़ा रहूं? कोई पहचान ही नहीं रहा है। तुम मुझे उठा लो, जगा दो। बस, मैंने छेनी उठाकर इस पर मेहनत की। जो सोया था उसे जगाया। बुद्धत्व को कहीं पाने नहीं जाना है। हरेक के भीतर आज जो चट्टान की तरह मालूम हो रहा है-अनगढ़, बस जरा से छेनी-हथौड़े की जरूरत है। सब के भीतर से पुकार रहा है कि कब तक पड़ा रहूंगा? उघाड़ो मुझे! इसलिए बुद्ध कहते हैं, जो तुम सुनो, जो सुभाषित तुम्हारे कानों में पड़ जाएं, उन्हें तुम स्मृति में संगृहीत मत करते जाना। उन्हें उतारना आचरण में। उन्हें जीवन की शैली बनाना। धीरे-धीरे तुम्हारे चारों तरफ उनकी हवा तुम्हें घेरे रहे, उनके मौसम में तुम जीना। जल्दी ही तुम पाओगे कि तुम्हारे भीतर का बुद्धत्व उभरना शुरू हो गया। फूल माला बन गए। ___ और तब एक ऐसी घटना घटती है, जो संसार के नियमों के पार है। फूलों की सुगंध वायु की विपरीत दिशा में नहीं जाती, न चंदन की, न तगर की, न चमेली की, न बेला की। लेकिन जिनके भीतर का बुद्धपुरुष जाग गया, बुद्ध चैतन्य जाग गया, 174

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