Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 147
________________ 6 धम्मि // 35 // गजे शांते गते स्वास्थ्यं / नगरे सागरः पुनः॥ दधत्पाणिगृहोद्योगं / कन्यानिस्तानि | रोच्यत // 40 // अस्मान्मृत्युमुखे दिप्त्वा / तदा नष्टोऽसि किं शव // सांप्रतं दर्शयन् प्रेम-पाटवं लङसेऽपि न // 41 // श्राकृत्या पुरुषोऽसि त्वं / गुणैः स्त्रीज्योऽपि हीयसे // ईक्सत्त्वं प्रियीकु. o / वरं त्वामाशया कया // 42 // नूनं नायं गजो दुष्टः / पूर्वजः किंतु कोऽपि नः / / . यस्ते प्रा. चीकटद् वृत्त-मवृत्ते मंगलत्रये // 43 / / वृणुमस्त्वां प्रियैकात्म-जीवं की न तद्वयं // येन प्राण. | रहेला परशब्दनीपेठे पोतानी त्रणे स्त्रीनने मव्यो. // 35 // हवे ते हाथी शांत थयावाद तथा नगर पण खेदरहित थयाबाद ते सागरदत्त ज्यारे पानी विवाहनी सामग्री करवा लाग्यो त्यारे ते कन्याए तेने कडं के, // 40 // अरे मूर्ख! ते वखते तुं मोने मोतना मुखमां फेंकीने केम नाशी गयो? अने हवे प्रेमचतुराश् देखाडतां तुं शरमातो पण नथी? // 1 // फक्त याकारथी तुं पुरुष गे, परंतु गुणोथी तो स्त्रीनथी पण नपावट गे, माटे तने यावा बायलाने यमो शं अाशाए अमारो खामी करीये!! // 4 // . खरेखर आ कई उष्ट हाथी नहोतो, परंतु अमारो को. श्क पूर्वज होवो जोश्ये, के जेणे त्रण मंगळफेरा फर्या पहेलांज तारं या पराक्रम प्रगट करी दे P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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