Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 193
________________ SHH धम्मिः जनं हत्वा धनं हत्वा / गोन्यस्तर्णान् वियोज्य च // अवस्था सैव मे जुयो। नविता पंचषैर्दिनैः | माई // 61 // वृत्तिर्मगलुजंगानां / सुकरा तृणवायुन्निः // मनुजा हंत दुःपुरो–दरा देवेन चक्रिरे // | // 6 // वरं बुद्धदासहनं / गहनं सेवितं वरं // न तृप्तिरपि दुःकर्म-प्रनवैर्विनवैः पुनः॥ 63 / / किमेचिरायुधैर्जतु-हत्ययेव मलीमसैः // अमीभिः सैनिकैः किं वा / श्वसंचारसाधकैः // 64 // | एवं शमसुधांनोधि-वीचिविमलिताशयः // सोऽचालीदायुधांस्त्यक्त्वा-ऽनापृच्च्य च परिबदं // 6 // माटे मने कुशिष्योना सरदारने धिक्कार . // 60 // माणसोने मारवाथी, धन हरवाथी तथा गायोथी वानरमांननो वियोग कराववाथी मारी पण पांच दिवसोमां तेज अवस्था थशे. // 1 // हरिण अने सोनी पण घास अने वायुथी थती आजीविका सहेली ने, परंतु अरेरे! दैवे मा. णसोने दुःखे पेट नराय एवा कर्या . // 6 // कुधा सहन करवी सारी, वनमां निवास करखो सारो, परंतु कुकर्मथी मेळवेलां धनथी तृप्त थq पण सारं नथी. // 63 // जीवहिंसाधी जाणे मलीन थयेला एवा या हथियारोनुं शं प्रयोजन के ? तथा नरकमां मोकलनारा था सैनिकोनुं पण शुं प्रयोजन ? || 64 // एवी रीते शांततारूपी अमृतसागरना मोजांनथी निर्मल थयेला था | P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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