Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 195
________________ धजि. अहो मोहाऊनो जन्म-जराचं दूषणवजं // न पश्यति नवे काली / कलत्रमिव दुर्नयं // 31 // न जोगैरिनिर्भुक्तै-रुपर्युपरि तृप्यति // संसारी विविधाहारै-नस्मकव्याधिमानिव // 12 // सजुजं गमिवागारं / रजोमिश्रमिवोदकं // सत्रासमिव माणिक्यं / मलक्विन्नमिवांबरं // 73 // सकंटकमि 746 | वाध्वानं / क्रूरकेंद्रमिवोदयं // न स्वीकुर्याद बुधो रि-क्वेशं वैषयिकं सुखं // 7 // थाजन्म य दररहित थश्ने चारित्रमा रुचि धारण करीने अध्यात्मबुध्थिी ते चिरकालसुधी विचारखा लाग्यो के, // 70 // अहो! कामी माणस जेम दुराचारी स्त्रीने जोतो नथी, तेम था संसारमा माणस मोहने लीधे जन्म, जराआदिक दूषणोना समुढ्ने जोतो नथी. // 31 // भस्मक व्याधिवाळो मा. णस जेम विविध जोजनथी संतुष्ट थतो नथी, तेम संसारी माणस पण जपरानपर जोगवेला घ. णा नोगोथी पण संतुष्ट थतो नथी. // 7 // माटे सर्पवान घरनीपेठे, धूळथी मिश्र थयेला ज लनीपेठे, त्रासवाळा माणिक्यनीपेठे, मेलथी नरेला वस्त्रनीपेठे, / / 73 // कांटावाळा मार्गनीपेठे तथा क्रूर केंद्रवान उदयनीपेठे डाह्यो माणस घणा क्लेशोवाळा वैषयिक सुखने स्वीकारतो नथी. / // 14 // क जीवितपर्यंत क्रोमोगमे महाक्लेशोथी जे धन नपार्जन कराय बे, ते धन मृत्युस Jun Gun Aaradhak Trust P.P.AC.Gunratnasuri M.S.

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