Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि नो जाग्येन दृष्टोऽसि / जंगमस्त्वं सुरफुमः // दत्वा दीदाफलं तन्मां / सुकृतार्थ कृतार्थय // 70 // / | ततः सूरिरमु मुक्त-मुक्ताजुषमदूषणं / गुरुपादांबुजस्पर्शा-धन्यमन्यमदीदयत् / / 71 // विशात श्रमणाचारो / विहरन गुरुणा सह // अंमान्यधिजगे जक्ति-रंगादेकादशापि सः / 2 // अ. | धीतश्रुतसूत्रार्थ-स्मृतिव्यग्रं न तन्मनः // अवकाशमपि प्राप / प्रमादैः सह संस्तवे // 3 // त. त्यजे यच्चिरं जुक्त-मपि सांसारिकं सुखं // न जातु तत्र सोऽस्ति / निकि श्व पन्नगः // 4 // यथीज जंगम कल्पवृतासमान आप मारी दृष्टिए पडेला छो, माटे हे सुकृतार्थ ! आप मने दीक्षा. रूपी फल थापीने कृतार्थ करो ? / / 70 // त्यारे मोतीनना बाजूषणोथी रहित थयेला, दूषणवि. नाना अने गुरुना चरणकमलना स्पर्शथी पोताने धन्य मानता एवा ते धम्मिलने गुरुमहाराजे दीदा पापी. // 1 // हवे जाणेल ने साधुजनो बाचार जेणे एवा ते धम्मिले गुरुसाथे विहार करतांथकां चक्तिना रंगयी अग्यारे अंगोनो अभ्यास कर्यो. // 2 // गणेलां शास्त्रोनां सूत्रोनां अर्थोना स्मरणमां थासक्त थयेधुं तेनुं मन प्रमादसाथे परिचय करवामां अवकाश पण पाम्युं न दि. // 3 // घणा काळ्सुधि नोगवेधुं एवं पण जे सांसारिक सुख तेणे तजी दीधुं, ते सुखमां P.P.AC.Gunratnasuri M.S. un Gun Aaradhak

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