Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 183
________________ धाम्म मृत्युदशां प्राप्ताः / शुश्रूष्यतेऽत्र केचन // वध्यंते केऽपि जीवंतो--ऽप्यराजकमिदं जगत् // 14 // सार्थ | पापप्रेरणया बंधू-नरके पातयंति ये // चेत्तेऽपि सुहृदः ख्याता ! हंत के तर्हि वैरिणः // 15 // ...] एवं सोऽक्षिपदाबित्र-दनुकंपारसं वरं / / संवरे संवरखातं / संवरे मुनिवन्मनः // 16 // यागात्प्रा. 734 धुर्णकस्ताव-दादीच क ते रुषा // स प्राह साहसी मीना / पयाच्यंत वारिणि // 17 // अ. करवामाटे जेम दावानल सळगावे, तेम पोताना यात्मानी दणिक तृप्तिमाटे नीच माणसो जी. वहिंसा करे . // 13 // मोतनी अणीपर पहोंचेला एवा पण केटलाक प्राणीननी था जगतमां शुश्रूषा करवामां आवे , अने केटलाक बिचारा प्राणीनने जीवतांज रहेंसी नाखवामां आवे रे. माटे या जगत राजाविनानुं . // 14 // पापकार्यनी प्रेरणा करीने जे माणसो बंधुनने नरकमां पाडे , अने तेनने पण जो मित्रो कहेवामां आवे, तो पनी अरे! वैरीज़ कोने कहेवा ! // 15 // एवी रीते उत्तम दयारसने धारण करीने मुनि जेम पोतानुं मन संवरमां तेम तेणे ते मत्स्योनो समुह ते जलकुंम्मा छोमी दोधो. // 16 // एवामां ते परोणाए यावीने तेने क्रोधपूर्वक पूज्य के ते मत्स्यो क्यां गया? त्यारे ते पण साहस धरीने बोल्यो के में तो ते मत्स्योने या जलमां | P.P.AC.Gunratnasuri Ms. Jun Gun Aaradhak Trust

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