Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj

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Page 184
________________ धम्मि। हो ते चापलं वत्स / न प्राच्यैः सदृशो नवान // अविमृश्यविधेयत्व-फलं संप्राप्स्यसि स्वयं // 17 // एवं निर्भर्त्सयन बालं / व्यालं क्रोधितया जयन् / / जगौ स तस्य दुर्वृत्तं / तत्पितुश्चित्तकल्पितं / / // 15 // किमु त्वममुचो मीना-नेवं पितरि पृति // कारणं करुणामेव / निर्विकल्पं जजल्प 735 | सः // 50 // तात ते मे वयस्याना-मपि प्राणाः प्रिया यथा / / सर्वेषामपि जंतूनां / तेऽथ किम न मन्यसे // 21 // कुटुंब वा शरीरं वा / जुक्त्वा नवति दूरतः / यात्मैव सहते जंतु-जातघाछोडी मेव्या . // 17 // अरे गेकरा! या तारं जगंडळापणु केवू? खरेखर तुं तारा पूर्वजोजे. दोन नीवड्यो, था तारां वगरविचार्या कार्यनुं फल तुं पोतानीमळेज गमीश. 17 / / एवीरीते क्रोधीपणाधी सर्पने पण जीततो ते परोणो ते बालकने निबंबवा लाग्यो, धने नुं या उराचरण मनमां राखीने तेना पिताने कही दीधुं. // 15 // तें मत्स्योने शामाटे गेमी मेव्या ? एम तेना पिताए पूज्वाथी तेणे शंकारहित दयाने तेना कारणरूप जणावी. // 20 // (वळी ते बो. व्यो के) हे पिताजी! तमारा, मारा तथा मित्रोना पण प्राणो जेम वहाला , तेम सर्व प्राणी. जना पण तेवाज होय एम आप शामाटे मानता नथी? // 21 // कुटुंब अथवा शरीर तो खा. P.P.AC.Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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