Book Title: Dhamil Charitra Bhashantar Part 04
Author(s): Shravak Hiralal Hansraj
Publisher: Shravak Hiralal Hansraj
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________________ धम्मि- हाधनान्निधस्तत्रा-नवत्कौटुंबिकापणीः // मिथ्याश्रुतवचोनीली-रागरंजितमानसः ॥ण्णा श्रुतिं न यस्य जैनी वा-प्रविवेश कदाचन / / मरुदेशं मरालीव / कामगौरिख पक्कणं / / 3400 // दयाहिंसाविवेकोऽपि / येन मिथ्याशा भृशं / जन्मांधेनेव नावोधि / वासरदाणदांतरं ॥१॥र्ध्वणस्येव पीमास्य / पल्यपि पापपंकिला // सुनंदाबस्तयोः पुत्रः / सच्चरित्रः खन्नावतः // 2 // कदाचन गृहे तस्य / सुहृदः केचिदाययुः / / स तेषां जयतीनक्ति-ज्यिगौरवमातनोत // 3 // सुनंदः पितरा खं रेवा नदी सेवी रही . // ए // त्यां एक महाधन नामनो कौटुंबिकोनो अग्रेसर रहेतो ह. तो, परंतु तेनुं मन मिथ्यात्वीजनां शास्त्रोनां वचनोरूपी गळीना रंगथी रंगाये हतुं. // ए॥ वळी मरुदेशमा जेम हंसणी, तथा दरिद्रीप्रते जेम कामधेनु तेम तेना कर्णमां को पण दिवसे जैनवचने प्रवेश कर्यो नहोतो. // 3400 // वळी जन्मांधनीपेठे ते अत्यंत मिथ्यादृष्टि महाधने दिवसे के रात्रिए दया के हिंसा वच्चेनो तफावत पण जाण्यो नहोतो. // 1 // दुष्टगुमडांवालाने जेम पीडा तेम तेनी स्त्री पण पापोथी मलीन थयेली हती, तेनने स्वभावधीज उत्तम चरित्रवाको सुनंद नामे पुत्र हतो. // 2 // हवे एक दिवसे तेने घेर केटलाक मित्रो पाव्या, त्यारे ते P.P. Ac. Gunratnasuri M.S. Jun Gun Aaradhak Trust

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