Book Title: Chandra Pragnapti Surya Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 12
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र तेणं कालेणं तेणं समएणं मिहिला णाम णयरी होत्था रिद्धस्थिमियसमिद्धा पमुइयजणजाणवया'पासादीया ४ ॥१॥ तीसे णं मिहिलाए णयरीए बहिया उत्तरपुरस्थिमे दिसीभाए माणिभद्दे णामं चेइए होत्था वण्णओ ॥२॥ तीसे णं मिहिलाए णयरीए जियसत्तू णामं राया होत्था वण्णओ ॥ ३ ॥ तस्स णं जियसत्तुस्स रण्णो धारिणी णामं देवी होत्था वण्णओ ॥४॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं तम्मि चेइए सामी समोसढे, परिसा णिग्गया, धम्मो कहिओ, परिसा पडिगया जाव राया जामेव दिसि पाउन्भूए तामेव दिसिं पडिगए ॥ ५ ॥ तेणं कालेणं तेणं समएणं समणस्स भगवओ महावीरस्स जेटे अंतेवासी इंदभूई णामं अणगारे गोयमे गोत्तेणं सत्तुस्सेहे समच उरंससंठाणसंठिए वजरिसहणारायसंघयणे जाव एवं वयासी-ता कहं ते वट्टोवही मुहुत्ताणं आहितेति वएजा ? ता अट्ठएगूणवीसे मुहुत्तसए सत्तावीसं च सहिभागे मुहुत्तस्स आहितेति वएजा ॥६॥ ता जया णं सूरिए सव्वभंतराओ मंडलाओ सव्वबाहिरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ. सव्वबाहिराओ मंडलाओ सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ एस णं अद्धा केवइयं राइंदियग्गेणं आहितेति वएजा ? ता तिण्णि छावढे राइंदियसए राइंदियग्गेणं आहितेति वएजा ॥ ७॥ ता एयाए अद्धाए सूरिए कइ मंडलाइं चरइ, कइ मंडलाई दुक्खुत्तो चरइ, कइ मंडलाइं एगक्खुत्तो चरइ ? ता चुलसीयं मंडलसयं चरइ, बासीइ मंडलसयं दुक्खुत्तो चरइ, तंजहा-णिक्खममाणे चेव पविसमाणे चेव, दुवे य खलु मंडलाई सई चरइ, तंजहा—सव्वन्भंतरं चेव मंडलं सव्वबाहिरं चेव मंडलं ॥८॥ जइ खलु तस्सेव आइच्चस्स संवच्छरस्स सयं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ सई अट्ठारसमुहुत्ता राई भवइ सयं दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ सई दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, पढमे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, अस्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि दुवालसमुहुत्ता राई भवइ, दोच्चे छम्मासे अस्थि अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे, णत्थि अट्ठारसमुहुत्ता राई, अस्थि दुवालसमुहुत्ता राई, पत्थि दुवालसमुहुत्ते दिवसे भवइ, पढमे वा छम्मासे दोच्चे वा छम्मासे णस्थि पण्णरसमुहुत्ते दिवसे भवइ, णत्थि पण्णरसमुहुत्ता राई. भवइ, तत्थ णं कं हेउं वएजा ? ता अयण्णं जंबूदीवे २ सव्वदीवसमुद्दाणं सव्वन्भंतराए जाव विसेसाहिए परिक्खेवेणं पण्णत्त, ता जया णं सूरिए सव्वब्भंतरमंडलं उवसंकमित्ता चार चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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