Book Title: Chandra Pragnapti Surya Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 46
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र अवरं दिवसं, एवं खलु सयभिसया णक्खत्ते एग राइं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ जोय जोएत्ता जोयं अणुपरियट्टइ जोयं अणुपरियट्टित्ता पाओ चंदं पुव्वाणं पोट्ठवयापं समप्पेइ, ता पुव्वापोहवया खलु णक्खत्ते पुत्वंभागे समक्खेत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पटमयाए पाओ चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, तओ पच्छा अवरराइं, एवं खलु पुव्वापोट्टवया णक्खेत्ते एगं च दिवसं एगं च राइं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ २ त्ता जोयं अणुपरियह २ त्ता पाओ चंदं उत्तरापोट्टवयाणं समप्पेइ, ता उत्तरापोट्टवया रूलु णक्खत्ते उभयंभागे दिवडक्खेत्ते पणयालीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ अवरं च राई तओ पच्छा अवरं दिवसं, एवं खलु उत्तरापोट्टवया णक्खत्ते . दो दिवसे एगं च राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ जोएत्ता जोयं अणुपरियट्ट २त्ता सायं चंदं रेवेईणं समप्पेइ, ता रेवई खलु णक्खत्ते पच्छंभागे समक्खत्ते तीसइमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, तओ पच्छा अवरं दिवसं, एवं खलु रेवई णखत्ते एगं राई एगं च दिवसं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ २ त्ता जोयं अणुपरियट्टइ २ त्ता सायं चंदं अस्सिणीणं समप्पेइ, ता अस्सिणी खलु मक्खत्ते पच्छंभागे समक्खेत्ते तीसहमुहुत्ते तप्पढमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, तओ पच्छा अवरं दिवस, एवं खलु अस्सिणी णक्खत्ते एगं च राई एगं च दिवसं चंदेण सर्दि जोयं जोएइ २ ता जोयं अणुपरियट्टह २ त्ता सायं चंदं भरणीणं समप्पेइ, ता भरणी खलु णक्खते णतंभागे अवहक्खेत्ते पण्णरसमुहुत्ते तप्पदंमयाए सायं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, णो लभइ अवरं दिवसं, एवं खलु भरणी णक्खत्ते एगं राई चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ २ त्ता जोयं अणुपरियट्टइ २ त्ता पाओ चंद कत्ति.याणं समप्पेइ, ता कत्तिया खलु णव खत्ते पुष्वंभागे समक्खेत्ते तीसइहुत्ते तप्पढमयाए पाओ चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ, तओ. पच्छा राई, एवं खलु कत्तिया. णक्खत्ते एगं च दिवसं एगं च राइं चंदेण सद्धिं जोयं जोएइ २ ता जोयं अणुपरिया २ त्ता पाओ चंदं रोहिणीणं समप्पेइ, रोहिणी जहा उत्तरभद्दवया मिगसिरं जहा धणिहा अद्दा जहा सयभिसया पुणव्वसू जहा उत्तराभद्दवया पुस्सो जहा धणिट्ठा अस्सेसा जहा सयभिसया महा जहा पुव्वाफग्गुणी पुव्वाफाल्गुणी जहा पुव्वाभवया उत्तराफ्गुणी जहा उत्तरांभद्दवया हत्थो चित्ता य नहा धणिट्ठा साई जहा सथमिसया विसाहा कहा उत्तरामरक्या अणुसहा वहा परिक्षा मिल्या मूला पुव्वासादा य बहा पुवामहवया उत्तरासादा जहा उवासमक्या ॥ ३४ ॥ दसमस्स पाहुडस्स चउत्थं पाहुडपाहुडं समत्तं ॥१०.४॥ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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