Book Title: Chandra Pragnapti Surya Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 35
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र २५ सूरिए सव्वभंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया णं उत्तमकट्ठपत्ते उक्कोसए अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ, जहणिया दुवालसमुहुत्ता राई भवर, से क्खिममा सूरिए णवं संवच्छरं अयमाणे पढमंसि अहोरत्तंसि अभितराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए अभिंतराणंतरं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ तया गं एगेणं राईदिएणं एगं भागं ओयाए दिवसखेत्तस्स णित्रुट्ठित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवाढत्ता चारं चरइ मंडलं अट्ठारसहिं तीसेहिं सएहिं छेत्ता, तया णं अट्ठारसमुहुत्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणे, दुवालसमुहुत्ता राई भवइ दोहिं एगट्टि - भागमुहुत्तेहिं अहिया, से णिक्खममाणे सूरिए दोच्चंसि अहोरत्तंसि अस्मितरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरई, ता जया णं सूरिए अभितरतच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चर तया णं दोहिं राईदिएहिं दो भागे ओयाए दिवसखेत्तस्स णिबुकित्ता रयणिखेत्तस्स अभिवेत्ता चारं चरद्द मंडलं अट्ठारसती सहि सएहि केला, तया णं अट्ठारस मुहुत्ते दिवसे भवइ चाहिं एगट्टिभागमुहुत्ता ऊणे, दुबालसमुहुत्ता राई भवद्द चडाईं एगकिभागमुहु तेहिं अहिंया, एवं खलु एष्णुवारणं णिक्खममाणे सूरिए तयाणंतराओ तयाणंतरं मंडलाओ मंडल संकममाणे २ एगमेगे मंडले एगमेगे राईदिएण एगमेग भाग ओमार दिवसखेत्तस्स णिमाणे २ रयणिले तस्स अमिबडेमाणे २ सम्म बाहिर मंडल उबसंकमित्ता चारं चरद्द, ता जया णं सूरिए सम्मभतराओ मंडलाओ सम्बंबाहिर मंडळ उबसंकमिता भारं चरह तथा र्ण सम्पतरं मंडल पणिहाय एगेणं तेसीयर्ण राईदिपसरणं एवं तेलीय भागसर्य भयार दिवसतस्स णिउता रमणिकेतस्स भभिसा चार चर मंडल अङ्गारलाई तीसहिο छेता, तया उत्तमक पत्ता उक्कोसिया अङ्गारसमुहुत्ता राई भवर, जहणणार सुबास दिवसे भवर, एस र्ण पठमछम्मासे, एस पढमस्त छम्मासभ्स पजबसाणे, से पतिमाणे सुरिए दो छम्मास भयमाणे पदमति अहोरससि बाहिराणतरं मंडल उपसंकमित्ता चारं चरद, ता जया ने सूरिए बाहिरात मंडल उवसंकमित्ता चारं चरर तथा णं एगेर्ण राईदिएण एग भाग भोपाए रमणिक्सक्स णिवुङ्गेत्ता दिवसखेत्तस्स अभिवेत्ता चारं चरह मंडलं अट्ठारसहिं तीसा • ऐसा, तया णं अट्ठारसमुहुत्ता राई भवद्द दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं ऊणा, दुवालसमुहन्ते दिवसे भवइ दोहिं एगट्टिभागमुहुत्तेहिं अहिए, से पविसमाणे सूरिए दो चंसि अहो - रत्तंसि बाहिरं तच्चं मंडलं उवसंकमित्ता चारं चरइ, ता जया णं सूरिए बाहिरतच्चं Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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