Book Title: Chandra Pragnapti Surya Pragnapti Sutra
Author(s): Nemichand Banthiya, Parasmal Chandaliya
Publisher: Akhil Bharatiya Sudharm Jain Sanskruti Rakshak Sangh

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Page 26
________________ चन्द्रप्रज्ञप्ति सूत्र १६ पडियागच्छइ.२ त्ता पुणरवि अवरभूपुरस्थिमाओ लोयंताओ पाओ सूरिए आउकार्यसि उत्तिहइ एगे एवमाइंसु ७, एगे पुण एवमाहंसु-ता पुरन्थिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाइं बहूई जोयणसहस्साई उड्ढे दूर उप्पइत्ता एन्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिट्ठइ, से णं इमं दाहिणढू लोयं तिरियं करेइ करेत्ता उत्तरडलोयं तमेव राओ, से णं इमं उत्तरडलोयं तिरियं करेइ २ त्ता दाहिणडलोयं तमेव राओ, से णं इमाई दाहिणुत्तरडलोयाइं तिरिय करेइ करेत्ता पुरत्थिमाओ लोयंताओ बहूई जोयणाई बहूई जोयणसयाई बहूई जोयणसहस्साई उड्डे दूरं उप्पइत्ता एत्थ णं पाओ सूरिए आगासंसि उत्तिइ एगे एवमाहंसु ८ । वयं पुण एवं वयामो-ता जम्बूदीवस्स २ पाईणपडीणाययउदीणदाहिणाययाए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरस्थिमंसि उत्तरपच्चत्थिमंसि य चउब्भागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहसमरमणिजाओ भूमिभागाओ अट्ट जोयणसयाई उई उप्पइत्ता एत्थ णं पाओ दुवे सूरिया० उत्तिटुंति, ते णं इमाई दाहिणुत्तराई जम्बूदीवभागाइं तिरियं करेंति २त्ता पुरस्थिमपचत्थिमाइं जम्बूदीवभागाई तमेव राओ, ते णं इमाई पुरस्थिमपञ्चस्थिमाइं जम्बूदीवभागाइं तिरियं करेंति २त्ता दाहिणुत्तराई जम्बूदीवभागाइं तमेव राओ, ते णं इमाई दाहिणुत्तराई पुरथिमपञ्चस्थिमाई च जम्बूदीवभागाइं तिरियं करेंति २ त्ता जम्बूदीवस्स २ पाईणपडीणाययउदीणदाहिणाययाए जीवाए मंडलं चउव्वीसेणं सएणं छेत्ता दाहिणपुरथिमिल्लंसि उत्तरपञ्चथिमिल्लंसि य चउभागमंडलंसि इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए बहुसमरमणिजाओ भूमिभागाओ अट्ठ जोयणसयाइं उड्डे उप्पइत्ता एत्थ णं पाओ दुवे सूरिया आगासंसि उत्तिटुंति ।१९। बिइयस्स पाहुडस्स पढम पाहुडपाहुड समत्त । ता कहं ते मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए चारं चरइ आहिताति वएजा ? तत्थ खलु इमाओ दुवे पडिवत्तीओपण्णत्ताओ, तं०-तत्थेगे एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए भेयघाएणं मंकमइ० एगे एवमाहंसु १, एगे पुण एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए कण्णकलं णिन्वेढेइ...२, तत्थ (णं) जे ते एवमाहंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए मेयघाएणं संकमइ, तेसि णं अयं दोसे, ता जेणंतरेणं मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए भेयघाएणं संकमइ एवइयं च णं अद्धं पुरओ ण गच्छइ, पुरओ अगच्छमाणे मंडलकालं परिहवेइ, तेसि णं अयं दोसे, तत्थ जे ते एवमाइंसु-ता मंडलाओ मंडलं संकममाणे २ सूरिए कण्णकल णिव्वेढेइ, तेसि णं अयं विसेसे, ता जेणंतरेणंमंडलाओ मंडलं संकममाणे २ Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org

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